यह आर्टिकल लिखा गया सहयोगी लेखक द्वारा Trudi Griffin, LPC, MS. ट्रूडी ग्रिफिन विस्कॉन्सिन में एक लाइसेंस प्राप्त पेशेवर परामर्शदाता है। उन्होंने 2011 में मार्क्वेट यूनिवर्सिटी से क्लीनिकल मेंटल हेल्थ काउंसलिंग में एमएस किया।
यहाँ पर 33 रेफरेन्स दिए गए हैं जिन्हे आप आर्टिकल में नीचे देख सकते हैं।
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डिप्रेशन एक क्लिनिकल कंडीशन है और यह उतनी ही वास्तविक मर्ज है जितना कि सर्दी-जुकाम या फ़्लू। किसी को सचमुच ही डिप्रेशन है, या महज उदासी या विषाद का एक तेज अटैक, यह भावनाओं या लक्षणों की गंभीरता और उनके बार-बार होने से जाना जा सकता है। डिप्रेशन का इलाज हर व्यक्ति के मामले में अलग-अलग हो सकता है, लेकिन कुछ ऐसे एहतियात बरते जा सकते हैं, जो ज्यादातर लोगों के मामले में कारगर होंगे। सही इलाज से आप डिप्रेशन के लक्षणों को कम करके अपने जीवनशैली पर इसके घातक असर में कमी ला सकते हैं।
चरण
डिप्रेशन है भी या नहीं, पहले ये पता करें (How to Diagnose Depression in Hindi)
- हर रोज आप कैसा महसूस कर रहे हैं, इस पर दो हफ्ते नजर रखें: अगर आप अपने को डिप्रेशन के मूड में महसूस कर रहे हैं, जैसे कि गहरी उदासी, और जिन चीजों में आपकी पहले दिलचस्पी थी, उनमें रुचि खो बैठे हैं, तो शायद आप डिप्रेशन के शिकार हैं। यह लक्षण दिन में ज्यादातर वक्त हावी रहना चाहिए और कम से कम दो हफ्ते तक आप इसे रोज महसूस करेंगे।[१]
- ये लक्षण दो हफ्ते तक रहेंगे और कुछ रुक कर बार-बार लौट आयेंगे। इसे “रेकरेंट एपिसोड (recurrent episodes)” कहते हैं। इस मामले में, लक्षण एक “बुरे दिन” की अपेक्षा ज्यादा गंभीर होंगे। दरअसल डिप्रेशन की स्थिति में मूड में जबरदस्त बदलाव देखा जाता है, जो किसी के नॉर्मल सामाजिक व्यवहार और दफ्तर के सामान्य बर्ताव को बिल्कुल बदल देता है। मरीज स्कूल जाना या काम पर जाना भी बंद कर सकता है। इसी तरह, ऐसे मनोभाव के कारण आप स्पोर्ट्स, क्राफ्ट, दोस्तों-से मेल-मुलाक़ात जैसे अपने पसंदीदा शौक में भी दिलचस्पी खो देंगे।
- अगर आपकी जिन्दगी में कोई बड़ी घटना हुई है, मसलन परिवार के किसी सदस्य की मौत, तो आपमें अवसाद के ऐसे बहुत से लक्षण देखे जा सकते हैं, इसके बावजूद इस मामले में रोग की दृष्टि से आपको डिप्रेशन ग्रस्त नहीं कहा जा सकता। आपके लक्षण दुःख की सामान्य प्रक्रिया से पैदा हो रहे हैं या गहरे डिप्रेशन के अटैक से, यह जानने के लिए अपने डॉक्टर या थेरेपिस्ट से मिलिए।[२]
- डिप्रेशन के दूसरे लक्षणों पर गौर करें: उदास महसूस करने और चीजों में दिलचस्पी खो देने के अलावा, एक डिप्रेशन का शिकार आदमी दिन के ज्यादातर समय कुछ दूसरे लक्षणों को भी महसूस करेगा। उन पर नजर रखिये, लगभग हर रोज, दो हफ्ते तक। गौर कीजिये कि क्या आप इनमें से कोई तीन या उससे ज्यादा लक्षण तो नहीं महसूस कर रहे हैं।[३] इनमें ऐसे लक्षणों को शामिल किया जा सकता है;
- भूख और वजन में अच्छी-खासी गिरावट
- नींद में खलल (सो पाने में असमर्थ हैं, या ज्यादा सो रहे हैं)
- थकान और ऊर्जा में कमी
- चिडचिड़ेपन में बढ़ोतरी, या आम गतिविधियों में कमी जो बड़ी आसानी से दूसरे लोगों की नजर में आ जाती है
- अत्यधिक अपराधबोध या हीनता बोध
- कंसंट्रेट करने में परेशानी या अपने को उलझन की स्थिति में महसूस करना
- बार-बार मृत्यु या आत्महत्या का खयाल आना, आत्महत्या की कोशिश और आत्महत्या की योजना बनाना
- आत्मह्त्या का ख़याल आये, तो तुरंत सहायता लें: अगर आप या आपके जान-पहचान वाला कोई व्यक्ति आत्महत्या के बारे में सोच रहा है, तो नजदीक के अस्पताल की इमरजेंसी में दाखिल होकर या हेल्पलाइन पर कॉल करके फौरन डॉक्टरी मदद लीजिए। बिना स्पेशलिस्ट की सहायता के ऐसे खयालों से छुटकारा पाने के बारे में न सोचकर आपको सीधे डॉक्टर से मिलना चाहिए।
- डिप्रेशन और "उदासी" में फर्क कीजिए: उदासी या विषाद एक आम भावनात्मक स्थिति है, जो स्ट्रेस, जिन्दगी की बड़ी घटनायें (पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों), और यहाँ तक कि मौसम के असर से भी पैदा होती है। उदासी और डिप्रेशन में फर्क इसके लक्षणों की तीव्रता और इसके बार-बार लौट आने से किया जा सकता है। लेकिन अगर आपमें ये लक्षण लगातार दो हफ्ते तक रोज बने रहते हैं, तो शायद आप डिप्रेशन के शिकार हैं।[४]
- जिन्दगी की कोई बड़ी घटना, जैसे किसी प्रियजन की मौत आदि, डिप्रेशन जैसे लक्षण पैदा कर सकती है। लेकिन एक बड़ा फर्क यह रहता है कि शोक की स्थिति में, मरने वाले व्यक्ति के साथ गुजरी पॉजिटिव यादें बनी रह सकती हैं, और व्यक्ति इस हाल में भी कई तरह की गतिविधियों का लुत्फ़ लेता है। डिप्रेशन के शिकार लोगों के लिए नॉर्मल एक्टिविटी में कोई खुशी या लुत्फ़ ले पाना बेहद मुश्किल भरा काम होता है।[५]
- पिछले कुछ हफ़्तों में आपने जो काम किये हैं, उन्हें लिख लीजिए: काम पर जाने या क्लास में उपस्थिति से लेकर खाना खाने और नहाने तक हर गतिविधि की एक लिस्ट बना लीजिए। गौर कीजिये कि अपनी गतिविधियों में आप क्या कोई पैटर्न देख पा रहे हैं। यह भी देखिये कि कुछ कामों में, जिन्हें आम तौर पर आप अपने आप खुशी-खुशी करते हैं, उनमें क्या आप कोई कमी देख रहे हैं।
- इस लिस्ट के इस्तेमाल से बारीकी से पड़ताल कीजिये कि कहीं आप जोखिम भरे व्यवहार की ओर तो नहीं झुक रहे हैं। डिप्रेशन के शिकार लोग जोखिम वाले कार्यों में आसानी से लग जाते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी जिन्दगी के किसी नतीजे की फ़िक्र अब नहीं रह जाती, और अपनी देख-भाल के लिए उन्हें दूसरों के मदद की जरूरत पड़ सकती है।[६]
- अगर आप डिप्रेशन के शिकार हैं, तो इस काम को पूरा करना आपके लिए बेहद कठिन होगा। इसे करने में पूरा वक्त लीजिए, या लिस्ट बनाने के लिए परिवार के किसी सदस्य या अपने दोस्त से मदद की गुजारिश कीजिये।
- अपने करीबी लोगों से पूछिए कि क्या उन्होंने आपके मूड में कोई फर्क देखा है: परिवार के किसी भरोसेमंद सदस्य या किसी दोस्त से पूछिए कि क्या उन्होंने आपके सामान्य व्यवहार में कोई बदलाव देखा है। इस मामले में भले ही व्यक्ति का निजी अनुभव सबसे अहम चीज है, उसे अच्छी तरह से जानने वाले लोगों की राय भी महत्वपूर्ण है।
- दूसरे लोग यह देख सकते हैं कि बिना किसी उकसावे के आपको बार-बार रुलाई आ जाती है और नहाने जैसी मामूली काम भी आप खुद नहीं कर पाते।[७]
- डॉक्टर से पूछिए कि कहीं आपकी शारीरिक दशा ही आपके डिप्रेशन की वजह तो नहीं: कुछ बीमारियों में डिप्रेशन के लक्षण पैदा होते हैं, खासकर थायरॉइड या शरीर के दूसरे अंगों के हॉर्मोन सिस्टम से जुड़ी बीमारियों में।[८] कहीं आपकी शारीरिक बीमारी ही डिप्रेशन तो नहीं पैदा कर रही है, यह जानने के लिए डॉक्टर से बात कीजिये।
- कुछ बीमारियाँ, खासकर क्रॉनिक स्थितियाँ, डिप्रेशन के लक्षणों का जोखिम लिए रहती हैं। इन मामलों में, लक्षणों का कारण जानने, और उन्हें कैसे ख़त्म किया जा सकता है, यह जानने के लिए किसी ऑब्जेक्टिव मेडिकल स्पेशलिस्ट की जरूरत होती है।[९]
प्रोफेशनल की मदद लेना (Seeking Professional Help for Depression)
- किसी मनोरोग विशेषज्ञ को चुनें: थेरेपिस्ट कई तरह के हैं, जिनमें में हर किसी की योग्यता अलग-अलग क्षेत्र में होती है। इनमें काउंसिलिंग साइकोलॉजिस्ट (counseling psychologist), क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट (clinical psychologist), और साइकिएट्रिस्ट (psychiatrist) आते हैं। आप इनमें से किसी एक या एक से ज्यादा से मिल सकते हैं
- काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट (counseling psychologist): काउंसलिंग साइकोलॉजी ऐसी थेरेपी है, जो मदद की टेक्नीक पर फोकस करती है, और लोगों को जीवन के कठिन दौर से निकलने में सहायता करती है। यह थेरेपी लम्बे या कम समय के लिए ली जा सकती है, और अक्सर इसकी प्रकृति समस्या के अनुसार सुनिश्चित होती है और लक्ष्य आधारित होती है।[१०] काउंसलर अक्सर अपने सावधानी भरे सवालों पर आपको बोलने के लिए कहेगा, और फिर गौर से सुनना चाहेगा कि आपको क्या कहना है। काउंसलर एक एक्टिव श्रोता बना रहेगा और आपको महत्वपूर्ण विचारों और वाक्यों की पहचान करने में भी मदद करेगा। वे आपसे आपके इन खयालों पर लम्बी चर्चा करने के लिए कहेंगे और उन भावनात्मक। इसके जरिये वे आपके भावनात्मक और माहौल से जुड़ी समस्याओं को खोज पाने और उन्हें हल करने में मादद करेंगे जो आपके डिप्रेशन को पैदा कर रही हैं।
- क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट (clinical psychologist): ये लोग ऐसे टेस्ट के लिए प्रशिक्षित होते हैं, जिससे आपके समस्याओं की डाइग्नोसिस संभव हो सके, और इस तरह वे साइकोपैथोलॉजी psychopathology, या व्यवहार से जुड़ी या मानसिक बीमारी के अध्ययन पर फोकस करते हैं।[११]
- साइकिएट्रिस्ट (psychiatrist): ये लोग अपनी प्रैक्टिस में साइकोथेरेपी ( psychotherapy) और स्केल या टेस्ट का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन आमतौर पर उनसे संपर्क तब किया जाता है जब दवाओं का विकल्प मौजूद हो और मरीज उन्हें अपनाना चाहता हो। ज्यादातर मामलों में, सिर्फ साइकिएट्रिस्ट ही दवाएँ लिख सकता है, हालाँकि कुछ परिस्थितियाँ साइकोलॉजिस्ट को दवायें लिखने की इजाजत देती हैं।[१२]
- रेफरल (referral) ढूंढ़ें: एक सही काउंसिलर को ढूँढने में, किसी दोस्त, परिवार के सदस्य, अपने धार्मिक ग्रुप के किसी नेता, कम्युनिटी मेंटल हेल्थ सेंटर, एम्प्लोयी असिस्टेंस प्रोग्राम (Employee Assistance Program) (अगर आपका एम्प्लायर ऐसी सुविधा दे रहा है) या अपने डॉक्टर की सिफारिश से मदद लीजिए।[१३]
- दूसरे प्रोफेशनल एसोसिएशन जैसे सरकारी साइकोलॉजिकल एसोसिएशन आपके इलाके में मौजूद अपने सदस्यों को ढूँढने में आपकी मदद कर सकते हैं।[१४]
- थेरेपिस्ट की जाँच-पड़ताल कर लें: किसी ऐसे थेरेपिस्ट को ढूँढ़िए जहाँ आप अपने को सहज महसूस करें। काउंसिलिंग का एक खराब तजुर्बा आपको इससे कई सालों के लिए दूर कर सकता है, जिससे आप मूल्यवान थेरेपी से वंचित हो जायेंगे। याद रखें, सभी मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल एक जैसे नहीं होते; एक ऐसे पेशेवर का पता लगाइए जिसे आप पसंद करें और जिससे इलाज कराने में आपकी दिलचस्पी हो।
- आमतौर पर थेरेपिस्ट अपने सावधानी भरे सवालों के जवाब में आपको बोलने के लिए उकसाएँगे, और फिर आपको क्या कहना है, वह सुनना चाहेंगे। शुरू में अपने काउंसिलर के आगे खुलना मानसिक रूप से आपके लिए बेहद तनाव भरा होगा, लेकिन कुछ मिनटों के बाद ज्यादातर लोगों को बोलने से रोकना बेहद मुश्किल हो जाता है।
- जाँच कर लीजए कि थेरेपिस्ट लाइसेंस धारी हो: मेंटल हेल्थ स्पेशलिस्ट के पास प्रैक्टिस करने का लाइसेंस होना चाहिए। यह सुनिश्चित कीजिये कि मेडिकल स्पेशलिस्ट को प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिला हो। एसोसिएशन ऑफ़ स्टेट एंड प्रोविंशियल साइकोलॉजिस्ट बोर्ड्स (Association of State and Provincial Psychology Boards) की वेबसाइट[१५] आपको ऐसी बेसिक जानकारियाँ देती है कि एक थेरेपिस्ट को कैसे चुना जाए, आपके प्रदेश में लाइसेंस के लिए क्या-क्या जरूरतें हैं, और कैसे जाना जाए कि किसी के पास लाइसेंस है या नहीं, आदि।
- अपने हेल्थ इंश्योरेंस कम्पनी की सलाह लें: हालाँकि मानसिक बीमारियों का वैध रूप से वैसे ही इलाज कराने की जरूरत होती है, जैसे शारीरिक बीमारियों की, और हो सकता है कि आपकी इंश्योरेंस की पॉलिसी के दायरे में ऐसी थेरेपी कवर की गयी हो। अपनी इंश्योरेंस कम्पनी से ज़रा पड़ताल कर लीजिए, जिससे इलाज शुरू करने से पहले आप जरूरी रेफ्रेन्स पा सकें। इससे यह भी पक्का हो जाएगा कि आप ऐसे डॉक्टर के पास जा रहे हैं, जो आपकी इंश्योरेंस पालिसी में कवर कर लिया गया है।[१६]
- अलग-अलग थेरेपी के बारे में अपने स्पेशलिस्ट से बात करें: आम तौर पर तीन मुख्य तरह की थेरेपी का फायदा तकरीबन सभी मरीजों को होता देखा गया है। ये हैं, कॉग्निटिव विहैवियरल थेरेपी (Cognitive behavioral therapy), इन्टरपर्सनल थेरेपी ((interpersonal therepy), और विहैवियरल साइकोथेरेपी (Behavioral psychotherapy)।[१७] ढेर सारे दूसरे तरीके भी हैं। आपका थेरेपिस्ट ही आपके इलाज का सही कोर्स तय करेगा।
- कॉग्निटिव विहैवियरल थेरेपी (Cognitive behavioral therapy-CBT): इसका लक्ष्य उन विश्वासों, रवैये, और विचारों को चैलेन्ज करना और उन्हें बदलना है जो डिप्रेशन के लक्षणों का कारण हो सकती हैं, और इससे बिगड़े हुए व्यवहार को बदलने की कोशिश की जाती है।
- इंटरपर्सनल थेरेपी (Interpersonal therapy -IPT): इंटरपर्सनल थेरेपी जिन्दगी में आये बदलावों, सामाजिक अलगाव (social isolation), सोशल स्किल की कमी और व्यक्ति के दूसरे आपसी रिश्तों (interpersonal issues) पर फोकस करता है, जो डिप्रेशन के लक्षणों को पैदा कर सकते हैं। अगर किसी निर्दिष्ट घटना (जैसे मृत्यु आदि) ने हाल में डिप्रेशन के एपिसोड को छेड़ दिया है, तो इंटरपर्सनल थेरेपी ख़ास तौर पर असरदार हो सकती है।
- विहैवियरल साइकोथेरेपी (Behavioral psychotherapy): विहैवियरल थेरेपी दुखद अनुभवों को कम करते हुए खुशी देने वाली गतिविधिवियों को बढ़ाने के लक्ष्य पर चलती है। इसमें एक्टिविटी शिड्यूलिंग (activity scheduling), सेल्फ कंट्रोल थेरेपी (self-control therapy), सोशल स्किल की ट्रेनिंग (social skills training) और समस्याओं के समाधान से जुड़ी टेक्नीक शामिल हैं।
- धैर्य रखें: काउंसिलिंग का असर धीरे-धीरे होता है। कोई स्थायी असर शुरू होने से पहले कम से कम कुछ महीने तक नियमित सेशन में भाग लीजिए। इसे असरदार होने तक पूरा वक्त दीजिये और तब तक उम्मीद मत छोड़िये।
दवा लेने के बारे में अपने साइकिएट्रिस्ट से बात कीजिये (Medication for Depression)
- साइकिएट्रिस्ट से किसी एंटीडिप्रेसेंट (antidepressants) दवा के बारे में पूछिए: एंटीडिप्रेसेंट दवायें ब्रेन के न्यूरोट्रांसमीटर सिस्टम (neurotransmitter system) पर असर डालती हैं, और न्यूरोट्रांसमीटर की बनावट या उन्हें ब्रेन जिस तरह से इस्तेमाल कर रहा है, उससे पैदा होने वाली समस्याओं को ठीक करने की कोशिश करती हैं। जिन न्यूरोट्रांसमीटर पर ये असर डालती हैं उनके नाम के मुताबिक ही एंटीडिप्रेसेंट की कैटेगरी तय होती है।[१८]
- एसएसआरआई (SSRI), एसएनआरआई (SNRI), एमएओआई (MAOI), और ट्राईसाईक्लिक्स (tricyclic) सबसे आम श्रेणी के एंटी-डिप्रेसेंट हैं। बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने वाले कुछ एंटीडिप्रेसेंट का नाम ऑनलाइन सर्च करके भी ढूंढ़ा जा सकता है।[१९] आपके केस के लिए जरूरी ख़ास तरह की दवाओं के बारे में कोई साइकिएट्रिस्ट ही बता पायेगा।
- हो सकता है आपका साइकिएट्रिस्ट कुछ समय के लिए अलग-अलग दवाओं का इस्तेमाल करना चाहेगा जब तक कि सबसे असरदार दवा नहीं मिल जाती। कुछ लोगों पर कुछ एंटीडिप्रेसेंट बुरा असर भी डालते हैं, इसलिए बहुत जरूरी है कि अपने स्पेशलिस्ट के संपर्क में बराबर रहा जाए, और मूड में कोई भी नकारात्मक बदलाव देखते ही उसे नोट किया जाये। आम तौर पर, दवाओं की श्रेणी को बदलते ही समस्या हल हो जायेगी।
- एंटीसाइकोटिक्स (antipsychotics) के बारे में अपने साइकिएट्रिस्ट से बात कीजिये: अगर अकेले आपका एंटीडिप्रेसेंट काम नहीं करता, तो आपको थेरेपिस्ट इसके साथ एंटीसाइकोटिक्स की सिफारिश करेगा। तीन तरह के एंटीसाइकोटिक्स हैं, एंटीपिपराजोल(aripiprazole), क्वेटिएपाइन (quetiapine), और रिस्पेरीडोन (risperidone)। एक एंटीडिप्रेसेंट/ एंटीसाइकोटिक कॉम्बिनेशन थेरेपी भी है, वह है (fluoxetine/olanzapine), इसे स्टैंडर्ड एंटीडिप्रेसेंट के साथ इस्तेमाल किये जाने के लिए स्वीकृत है। अगर अकेले एक एंटीडिप्रेसेंट असरदार नहीं हो पा रहा है, तो ये डिप्रेशन का इलाज कर सकते हैं।[२०]
- साइकोथेरेपी के साथ दवा का इस्तेमाल करें: दवाओं के असर को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने के लिए दवा खाने के साथ-साथ किसी मेंटल हेल्थ स्पेशलिस्ट के पास नियमित जाएँ।[२१]
- दवाएं नियमित लीजिए: एंटीडिप्रेसेंट असर दिखाने में वक्त लेती हैं, क्योंकि ये धीरे-धीरे ब्रेन के केमिकल संतुलन को सुधारती हैं। आम तौर पर आगर कहें, तो एक एंटीडिप्रेसेंट कोई भी स्थायी असर दिखाने में कम से कम तीन महीने का वक्त लेगी।
- अपने मूड के पैटर्न को लिखिए: अपने मूड, एनर्जी, हेल्थ और नींद पर असर डालने वाले पैटर्न को लिखने के लिए एक डायरी बनाइये। डायरी आपके भावनाओं की प्रक्रिया को समझने में मदद करेगी और इस बारे में अंतर्दृष्टि देगी कि क्यों कुछ बातें आपको वह ख़ास किस्म का अहसास कराती हैं, जिससे होकर आप बार-बार गुजरते हैं।[२२]
- ऐसे लोग हैं, जो डायरी लिखना सिखाते हैं, डायरी लिखना सिखाने वाली किताबें भी हैं और यहाँ तक कि अगर आपको ज्यादा स्ट्रक्चर की जरूरत है, तो ऑनलाइन डायरी बनाने के लिए वेबसाईट भी हैं।
- रोजाना लिखने की कोशिश करें: रोज लिखने की हैबिट बनाइये, भले ही कुछ मिनट ही सही। कुछ दिन तो आप काफी लिखना चाहेंगे, लेकिन दूसरे दिनों में आप लिखने में कम ऊर्जा और उत्साह महसूस करेंगे। आप जितनी बार लिखेंगे, लिखना उतना ही आसान हो जाएगा, इसलिए लिखने के लिए डंटे रहें जिससे कि यह आपकी मदद कर सके।[२३]
- अपने साथ हर समय पेन और कागज़ रखें: अपने साथ हमेशा एक पेन और एक जर्नल या नोटपैड रखिए जिससे कि जैसे ही आपको लिखने की जरूरत महसूस हो, लिख सकें। या फिर, अपने फोन, कंप्यूटर टैबलेट या दूसरी डिवाइस पर एक साधारण नोट लेने वाला एप्लीकेशन रखिये।
- जो चाहें लिखें: शब्दों को बाहर निकलने दीजिए और अगर इनका कोई अर्थ न निकले, तो भी इसकी परवाह मत कीजिये। स्पेलिंग, व्याकरण, या स्टाइल की फ़िक्र मत कीजिए; और यह भी फ़िक्र मत कीजिए कि दूसरे लोग इसके बारे में क्या सोचेंगे।
- अगर शेयर करने की इच्छा हो तभी इसे शेयर करें: अगर आप चाहें, तो अपने जर्नल को प्राइवेट भी रख सकते हैं। चाहें तो अपनी फैमिली, फ्रेंड्स या एक दोस्त से कुछ चीजें शेयर कर सकते हैं। आप एक ब्लॉग भी शुरू कर सकते हैं। यह आपके ऊपर है कि अपने जर्नल के किस तरह के इस्तेमाल में आप सहज महसूस करेंगे।
- डिप्रेशन बढ़ाने वाले खान-पान को छोड़ दीजिये: प्रोसेस्ड मीट, चॉकलेट, मिठाइयाँ, तला हुआ भोजन, प्रोसेस्ड अनाज और हाई फैट डेयरी जैसे प्रोसेस्ड फ़ूड डिप्रेशन के लक्षणों को बढ़ाने वाले माने जाते हैं।[२४]
- डिप्रेशन कम करने वाला खाना खाएं: फल, सब्जियाँ और मछलियाँ जो डिप्रेशन के लक्षणों को घटाने वाले माने जाते हैं, उन्हें ज्यादा खाएँ।[२५] ऐसा भोजन खाने से आपके शरीर को ज्यादा पोषक तत्व और विटामिन मिलेंगे और आप ज्यादा तंदरुस्त महसूस करेंगे।
- भूमध्यसागरीय (Mediterranean) आहार आजमाइए: भूमध्यसागरीय (Mediterranean) आहार दुनिया के उस हिस्से की ओर इशारा करता है, जहाँ यह आहार ज्यादा चलता है। फल, सब्जियाँ, मछली, बादाम, दाल, और ऑलिव आयल खाने पर ज्यादा जोर दीजिये।[२६]
- ऐसे आहार में एल्कोहल से बचा जाता है, जो अपने आपमें एक डिप्रेसेंट है।
- ओमेगा -3 फैटी एसिड (omega-3 fatty acids) और फ़ोलेट (folate) लीजिए: हालाँकि इसका कोई प्रमाण नहीं कि ओमेगा -3 फैटी एसिड अकेले डिप्रेशन का इलाज कर सकता है।[२७] अगर किसी थेरेपी के साथ ओमेगा -3 फैटी एसिड और फ़ोलेट को लिया जाए तो डिप्रेशन के इलाज में ये कुछ असरदार हो सकते हैं।
- इस पर नजर रखिये कि आपका आहार आपके मूड को कैसे प्रभावित करता है: ख़ास किस्म का खाना खाने के बाद दो घंटे तक नजर रखें कि यह आपके मूड को कैसे प्रभावित करता है। अगर आप कोई अच्छा या खराब मूड देखते हैं, तो सोचिये कि हाल ही में आपने कौन सा खाना खाया था। क्या किसी ख़ास खाने के साथ आप अपने मूड में कोई तालमेल देखते हैं?
- जो भी पोषण आप लेते हैं, हर किसी का नोट लेने की जरूरत नहीं है। लेकिन डिप्रेशन में दोबारा लौटने से बचने के लिए आप जो खाते हैं वह आपको कैसा अनुभव देता है, इस पर नजर रखने की जरूरत है।
- किसी मेडिकल डॉक्टर या व्यक्तिगत ट्रेनर की सलाह लीजिए: एक नई एक्सरसाइज रुटीन शुरु करने से पहले यह समझ लेना जरूरी है कि आपकी दिलचस्पी, आकार/आकृति, और चोटों (अगर कोई है) को देखते हुए कौन सी एक्सरसाइज आपके लिए अच्छी रहेगी। अपने फिटनेस लेवल को जानने के लिए एक डॉक्टर या निजी ट्रेनर से मिलें।
- उस व्यक्ति से यह भी जान सकते हैं कि कौन सी एक्सरसाइज आपके लिए सुरक्षित रहेगी और न सिर्फ इसमें आपको मजा आयेगा बल्कि शुरुआत में आपको एक्सरसाइज में डंटे रहने के लिए मोटिवेशन भी देगी।
- एक एक्सरसाइज रुटीन शुरु करें: एक्सरसाइज मूड को बेहतर करने में मदद करती है, और डिप्रेशन को दोबारा लौटने से रोकती है। रैंडम कंट्रोल ट्रायल (randomized control trial) में, एक्सरसाइज करीब-करीब दवाइयों जितनी ही असरदार पायी गयी है। एक्सपर्ट मानते हैं कि एक्सरसाइज शरीर से न्यूरोट्रांसमीटर और हॉर्मोन के स्राव को बढ़ाती है, और नींद को नियमित करती है।[२८]
- डिप्रेशन के इलाज के लिए एक्सरसाइज का उपयोग करने की एक अच्छी बात यह है कि दौड़ने जैसी एक्टिविटी में ज्यादा रुपया खर्च नहीं होता।
- लक्ष्य तय करने के लिए SMART सिस्टम का उपयोग करें: संक्षेप में कहें, तो SMART के अनुसार लक्ष्य तय कीजिये। इसे विस्तार दें तो इसका अर्थ है; निर्दिष्ट (Specific), मापने योग्य (Measurable), साधने योग्य (Attainable), रीयलिस्टिक (Realistic), और समानुसार (Timely)। एक्सरसाइज का लक्ष्य हासिल करने में ये गाइडलाइन आपको बढ़िया परिणाम देगी।
- अपने लक्ष्य को तय करने में SMART के “A” से शुरू कीजिये: सबसे पहले एक आसान लक्ष्य तय कीजिए, ताकि इसे हासिल करने से आपको सफलता का अनुभव हो। इससे आपको अगला लक्ष्य तय करने का आत्मविश्वास भी मिलेगा। अगर आपको लगता है कि आप अपने पर ज्यादा जोर नहीं डाल सकते हैं (जैसे कि दस मिनट से ज्यादा की वॉकिंग), तो अपने को अक्सर कुछ ज्यादा करने के लिए मजबूर कीजिये (जैसे कि एक हफ्ते तक रोज दस मिनट तक की वॉकिंग, फिर एक महीने तक, फिर पूरे साल)। देखिये कि कितने लम्बे समय तक आप इस तरह् से जारी रख सकते हैं।
- हर एक्सरसाइज सेशन को पहले से एक स्टेप आगे के तौर पर लीजिए: अपनी एक्सरसाइज के हर सेशन को अपने मूड और अपनी इच्छा शक्ति के पॉजिटिव प्रतिफलन में बेहतरी के तौर पर लीजिए।[२९] यहाँ तक कि एक्सरसाइज नहीं करने की अपेक्षा मीडियम पेस से 5 मिनट तक कि वॉकिंग भी बेहतर है। छोटी से छोटी उपलब्धि पर गर्व की भावना से रखने से आप आगे बढ़ने जैसा महसूस कर सकते हैं और अपने को अच्छा महसूस कर सकते हैं।
- कार्डियोवैस्कुलर (cardiovascular) एक्सरसाइज आजमाएँ: स्वीमिंग, रनिंग, साइक्लिंग जैसी एक्सरसाइज डिप्रेशन के इलाज की आदर्श एक्सरसाइज हैं। ऐसे कार्डियो एक्सरसाइज चुनें जो आपके जोड़ों के लिए आसान हों, जैसे स्वीमिंग या साइक्लिंग, बेशक अगर आप कर सकें तो।
- किसी दोस्त के साथ मिलकर एक्सरसाइज कीजिये: आपके साथ एक्सरसाइज करने के लिए परिवार के किसी सदस्य या दोस्त से बात कीजिये। बाहर निकलने में या जिम के लिए वे आपको मोटिवेशन दे सकते हैं। उन्हें बता दीजिये कि आपको मोटिवेट करना आसान नहीं होगा, लेकिन वे जो भी मदद करेंगे आप उसका संजीदगी से सम्मान करेंगे।
- धूप में ज्यादा समय बिताइए: कुछ रिसर्च ऐसा बताती हैं कि कि सूरज की धूप में ज्यादा समय बिताना आपके मूड पर पॉजिटिव असर डालता है। यह दरअसल विटामिन D के असर से होता है, जिन्हें कई स्रोतों (सिर्फ सूरज की धूप से नहीं) से पाया जा सकता है।[३०] जब आप बाहर हैं, तो आपको किसी निर्दिष्ट चीज की जरूरत नहीं है; बस बाहर बैठना और धूप में शरीर को गर्माहट देना ही काफी मददगार होगा।
- कुछ काउंसिलर डिप्रेशन के उन मरीजों के लिए सनलाईट लैंप की सिफारिश करते हैं, जो सर्दियों में कम धूप वाले इलाकों में रहते हैं; यह बाहर निकलकर धूप में खड़े होने वाला प्रभाव ही पैदा करता है।
- अगर आप धूप में कुछ मिनटों से ज्यादा के लिए बाहर जा रहे हैं, तो अपनी नंगी स्कीन पर सनस्क्रीन और धूप के चश्में लगाने की एहतियात बरतिये।
- बाहर निकलें: गार्डेनिंग, वॉकिंग, और बाहर जाकर दूसरे किस्म की गतिविधियों में शामिल होना लाभदायक हो सकता है। हालाँकि इनमें से कुछ गतिविधियाँ जहाँ एक्सरसाइज से जुड़ी हैं, तो भी, इनका फोकस एक्सरसाइज पर होना जरूरी नहीं है।[३१] ताजी हवा और खुली प्रकृति का मजा लेना आपके जेहन को शांत करने और शरीर को आराम देने में मददगार हो सकता है।
- अभिव्यक्ति का एक रचनात्मक माध्यम ढूंढ़ें: लम्बे समय से यह अनुमान किया जाता है कि रचनाशीलता और डिप्रेशन एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, क्योंकि कई लोग मानते हैं, कि यह शायद रचनात्मक व्यक्ति होने की “कीमत” है। हालाँकि डिप्रेशन, बार-बार तब पैदा होता है, जब एक रचनाशील व्यक्ति को अभिव्यक्ति के माध्यम को ढूंढ पाने में मुश्किल होती है। नियमित तौर पर लेखन, डांस, पेंटिंग या दूसरी गतिविधियों के जरिये एक रचनात्मक माध्यम की तलाश कीजिये।[३२]
- सेंट जॉन’स वॉर्ट (John’s Wort) आजमाएँ: सेंट जॉन’स वॉर्ट वह वैकल्पिक दवा है जिसे डिप्रेशन के हल्के रूपों में असरदार पाया गया है।[३३] हालाँकि बड़े पैमाने पर हुए अध्ययनों में इसे एक प्रायोगिक औषधि से ज्यादा प्रभावी नहीं पाया गया है। नेचुरल हेल्थ फ़ूड वाली दुकानों में यह आसानी से मिल सकता है।
- इसे कितनी मात्रा में और कितनी बार खाना है, यह जानने के लिए पैकेज पर दिए गए निर्देशों को देखें।
- हर्बल सप्लीमेंट (herbal supplements) किसी प्रतिष्ठित दुकान से ही खरीदें। ऐसे सप्लीमेंट की निगरानी प्रशासनिक संस्थानों द्वारा ढीले-ढाले ढंग से ही की जाती है, और इसलिए इसकी शुद्धता और गुणवत्ता का स्तर हर निर्माता के लिए अलग-अलग हो सकता है।
- एसएसआरआई (SSRIs) जैसी दवाओं के साथ सेंट जॉन वॉर्ट का उपयोग न करें। इससे आपके शरीर में बहुत जयादा सेरोटोनिन (serotonin) जाएगा जो घातक हो सकता है।
- अगर दूसरी दवाओं के साथ लिया जाए तो सेंट जॉन वॉर्ट उन्हें कम असरदार कर सकता है। जिन दवाओं पर यह असर डाल सकता है उनमें गर्भरोधक गोलियां, एंटीरेट्रोवायरल मेडिकेशन (antiretroviral medication) जैसे एचआई वी का इलाज करने वाली दवाओं, एंटीकोएगुलैंट्स (anticoagulants, Warfarin),हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी, और इम्यूनोसप्रेसेंट (immunosuppressant) दवाएँ शामिल हैं। अगर आप दूसरी दवाएँ ले रहे हैं, तो अपने डॉक्टर से जाँच-पड़ताल कर लीजिए।
- सेंट जॉन वॉर्ट की इसकी कामयाबी का समर्थन करने वाले प्रमाणों के अभाव में अमेरिकन साइकिएट्रिक एसोसिएशन इसके आम उपयोग की सिफारिश नहीं करता।
- नेशनल सेंटर फॉर अल्टरनेटिव एंड कॉम्प्लिमेंटरी मेडिसिन (National Center for Alternative and Complementary Medicine) होमियोपैथी उपचार लेने में सावधानी बरतने की सिफारिश करता है और इलाज करने वाले से खुली चर्चा कर लेने को प्रोत्साहित करता है जिससे ट्रीटमेंट सुरक्षित रहे।[३४]
- एसएएमई (SAMe) सप्लीमेंट आजमाएँ: एस-एडिनोसाइल मिथायोनिन (S-adenosyl methionine -SAMe) एक दूसरा दूसरा अल्टरनेटिव सप्लीमेंट है।[३५] एसएएमई (SAMe) प्राकृतिक रूप से पाया जानेवाला मॉलिक्यूल है, और शरीर में एसएएमई (SAMe) के स्तर में कमी डिप्रेशन से जुड़ा पाया गया है। आपके एसएएमई (SAMe) को बूस्ट करने के लिए एसएएमई (SAMe) को सीधे खुराक के तौर पर, या फिर नसों में इंजेक्शन के तौर पर इंट्राविनसली (intravenously)) या इंट्रामस्कयुलर्ली (intramuscularly) लिया जा सकता है।
- एसएएमई (SAMe) की तैयारी रेगुलेटेड (regulated) नहीं होती और इसकी क्षमता और इसके इन्ग्रेडियेंट (ingredient) निर्माताओं के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं।
- पैकेज पर दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए सही खुराक और इसकी डोज तय करें।
- एक्युपंचर ट्रीटमेंट लीजिए: एक्युपंचर एक पारंपरिक चीनी इलाज का हिस्सा है जिसके तहत शरीर के निर्दिष्ट हिस्से में सुई चुभोकर वहाँ एनर्जी ब्लॉकेज को या अंग के असंतुलन को दुरुस्त किया जाता है।[३६] अपने डॉक्टर से पूछकर या ऑनलाइन सर्च करके किसी एक्युपंचर स्पेशलिस्ट का पता लगाइए।
- अपने हेल्थ इन्श्योरेन्स कम्पनी से पता करें कि आपके इन्श्योरेन्स में एक्युपंचर को कवर किया गया है या नहीं।
- एक्युपंचर के फायदों के प्रमाण मिले-जुले हैं।[३७] एक स्टडी में प्रोजेक (Prozac) जैसे प्रभाव की तरह ही एक्युपंचर और न्यूरोप्रोटेक्टिव प्रोटीन (neuroprotective protein) को सामान्य लेवल पर लाने में सम्बन्ध देखा गया है।[३८] दूसरी स्टडी में इसका साइकोथेरेपी की तरह का असर देखा गया।[३९] ये स्टडी डिप्रेशन के इलाज के तौर पर एक्युपंचर में कुछ विश्वसनीयता जताती हैं, हालाँकि ज्यादा रिसर्च की जरूरत है।[४०]
- अपने थेरेपिस्ट से इलेक्ट्रोकंवल्सिव थेरेपी (Electroconvulsive therapy -ECT) के लिए कहें: डिप्रेशन के सबसे गंभीर मामलों, डिप्रेशन के साथ साइकोसिस या कैटेटोनिया (catatonia) के शिकार लोग, या दूसरे इलाज का असर जिनपर नहीं होता उनके लिए ईसीटी (ECT) की सिफारिश की जा सकती है।[४१] यह इलाज एक हल्के एनेस्थेटिक (mild anesthetic) से शुरू होता है, और फिर ब्रेन को कई शॉक दिए जाते हैं।
- तमाम एंटीडिप्रेसेंट थेरेपी में ईसीटी (ECT) की सफलता की रेट सबसे ज्यादा है (करीब 70%-90% मरीजों पर इसका असर देखा गया है।[४२]
- ईसीटी (ECT) की कुछ सीमाओं में इससे जुड़ धब्बे हैं, साथ ही कार्डियोवैस्कुलर और कोगनिटिव इफेक्ट (जैसे शॉर्ट टर्म की मेमोरी लॉस) समेत संभावित साइड इफेक्ट भी हैं।
- ट्रांसक्रेनियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन (transcranial magnetic stimulation) को आजमाएँ: ट्रांसक्रेनियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन (transcranial magnetic stimulation-TMS) ब्रेन को स्टिमुलेट करने के लिए चुम्बकीय क्वाइल (magnetic coil) का इस्तेमाल करती है। जो लोग बड़े डिप्रेशन के शिकार हैं और जिन पर दवा का कोई असर ही नहीं होता उनके इलाज के लिए इस ट्रीटमेंट को अमेरिकी प्रसाशनिक संस्था एफडीए (FDA) का अनुमोदन प्राप्त है।[४३] , [४४]
- रोज इलाज की जरूरत होती है, जो सामान्य आदमी के लिए इसे ले पाना कठिन बना देता है।
- वेगस नर्व स्टिमुलेशन (vagus nerve stimulation) को आजमाएँ: वेगस नर्व स्टिमुलेशन (vagus nerve stimulation-VNS) अपेक्षाकृत नया इलाज है जिसमें ऑटोनॉमिक नर्व सिस्टम (autonomic nervous system) के एक हिस्से वेगस नर्व (vagus nerve) को उत्तेजित करने के लिए एक डिवाइस इम्प्लांट की जाती है। जिन लोगों में दवाइयों का असर नहीं होता उन पर आजमाए जाने लिए इसे अनुमोदन प्राप्त है।[४५] , [४६]
- डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (Deep-brain stimulation) को आजमाएं: डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS) एक एक्सपेरिमेंटल ट्रीटमेंट है और इसे FDA का अनुमोदन नहीं प्राप्त है। इसमें एक मेडिकल उपकरण को इम्प्लांट किये जाने की जरूरत होती है, जो ब्रेन के एक हिस्से जिसे “एरिया 25”कहा जाता है, उसे उत्तेजित करता है।[४९]
- डीबीएस (DBS) के असर के बारे में बहुत सीमित जानकारी ही उपलब्ध है।[५०] एक एक्सपेरिमेंटल ट्रीटमेंट के तौर पर, डीबीएस (DBS) का इस्तेमाल सिर्फ तभी किया जाना चाहिए जब दूसरे ट्रीटमेंट फेल हो जाएँ या उनका विकल्प न बचा हो।
- न्यूरो फीडबैक (Neurofeedback) को आजमाएँ: जब डिप्रेशन का शिकार आदमी ब्रेन की एक्टिविटी का एक ख़ास पैटर्न दिखलाता है, तो न्यूरो फीडबैक का मकसद ब्रेन को दोबारा “परिचालित (re-train)” करना होता है।[५१] फंशनल मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग(fMRI) टेक्नीक से नए प्रकार की न्यूरो फीडबैक विकसित की जा रही है।
- न्यूरो फीडबैक महँगा हो सकता है और ज्यादा समय की माँग कर सकता है। इन्शुरेन्स कम्पनी हो सकता है इसके लिए पेमेंट न दे।
हेल्पलाइन नंबर्स
Organization | Phone Number |
---|---|
TeenLine | (800) 852-8336 |
Veteran Crisis Line | (800) 273-8255 (Press 1) |
Postpartum Support International | (800) 944-4773 |
The Trevor Project (LGBTQ) | (866) 488-7386 |
Depression and Bipolar Support Alliance | (800) 826-3632 |
National Suicide Prevention | (800) 273-8255 |
सलाह
- एक निर्दिष्ट इलाज के चुनाव का विकल्प एक ट्रायल और एरर (trial-and-error) की प्रक्रिया के तहत भी हो सकती है। किसी मनोराग स्पेशलिस्ट के साथ काम करते समय, पहली या दूसरी बार इलाज अगर कामयाब न हो तो निराश मत होइए; इसका सीधा मतलब हुआ कि आपको एक और दवा को आजमाया जाना चाहिए।
चेतावनी
- अगर आप या आपका कोई जान-पहचान वाला व्यक्ति आत्महत्या के बारे में सोच रहा है, तो कृपया पास के अस्पताल की इमरजेंसी में दाखिल होकर या हेल्पलाइन पर कॉल करके तुरंत डॉक्टरी मदद लीजिए। बिना स्पेशलिस्ट की मदद के इन ख्यालों से छुटकारा पाने के बारे में आपको बिलकुक नहीं सोचना चाहिए और सीधे डॉक्टर से मिलना चाहिए।
रेफरेन्स
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