कैसे किसी को प्रभावित कर दोस्त बनायें

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लोगों को प्रभावित करना और दोस्त बनाना आपको स्वाबलंबी बनाने वाली किताबों में दी गयी बातों से बड़ा विषय है। यह एक ऐसी इच्छा है जो हर इंसान के अंदर होती है और जिसे पूरा करने के लिए धैर्य, अभ्यास और चारित्रिक सुदृढ़ता की जरूरत होती है। आपकी सहायता के लिए हम इस लक्ष्य को प्राप्त करने के जो बातें आवश्यक हैं, उनको नीचे चरणबद्ध कर रहे हैं। आप इन्हें पढ़ें और एक बहुत ही बड़े व्यवहारिक ज्ञान को प्राप्त करने की दिशा में मजबूती से कदम उठायें।

विधि 1
विधि 1 का 2:

अपनी वेशभूषा पर ध्यान दें

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    अपने पहनावे पर ध्यान दें: कपड़े अवसर के अनुरूप, सोच-समझकर पहनें। इंसान अपने कपड़ों से लोगों में अपने प्रति, तुरंत एक छवि बनाने के लिए पहता है, चाहे ज़ोम्बी, फायर-फाइटर या दूल्हऩ हो। दरअसल, आपके द्वारा नित्य-प्रतिदिन पहने जानेवाले हर तरह के कपड़े, आपका आवरण है। आपकी पोशाक, आपका आवरण, आपको देखने वालों को आपके बारे में बहुत कुछ कहता है। ऐसे वस्त्र पहनें जिससे लोगों के बीच आपकी छवि आत्मविश्वासी, खुश और धैर्यवान व्यक्ति की बने, क्योंकि ये वो गुण हैं जो लोग अपने मित्रों में देखना चाहते हैं।
    • सामान्य भाषा में इसे यूँ समझिये- साफ़-सुथरे, बिना सिलवटों के, अच्छी फिटिंग के कपड़े पहनिए जिनके रंग और पैटर्न में समन्वय हो, जो एक-दूसरे के पूरक हों। इससे यह पता चलता है कि आप अपना इतनी अच्छी तरह से ख्याल रखते हैं कि आप अपनी वेशभूषा पर ध्यान देते हैं, इसको यथोचित बनाये रखने को अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और आपमें इतना आत्मविश्वास है कि आप इस बात को छुपाते भी नहीं।
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    स्वच्छ्ता पर ध्यान दें: हाथ मिलाने की दूरी और उससे ज्यादा नजदीक आने पर, बुरे एवं अच्छे हाइजीन में फर्क पता चल जाता है। यदि आप लोगों से सम्बन्ध बनाने को इच्छुक है, तो इसके लिए आपको उनके करीब जाना होगा, इसलिए आपकी शारीरिक स्वच्छता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि आपके कपड़ों की स्वच्छता। रोज स्नान करें, बालों को हफ्ते में कम से कम 3 बार और अधिकतम 5 बार धोएं; दिन में कम से कम दो बार दांतों को ब्रश करें, और कम से कम एक बार फ्लॉस करें; चेहरे को धोएं, बालों को कंघी या ब्रश से संवारें, और हर सुबह डिओडोरेंट का उपयोग करें। इसके अलावा इन बातों पर भी गौर करें, जैसे आपके नाख़ून बेतरतीब न हों और मर्दों के चेहरे के ऊपर उगने वाले बाल या तो तराशे हुए हों या शेव किये हुए हों।
    • महिलाएं अपनी व्यक्तिगत पसंद और प्राथमिकता के आधार पर अपनी कांख (अंडरआर्म) और पैर के बाल शेव कर सकती है। परंतु, ध्यान रखें, कि कुछ लोग शरीर के उन भागों से बाल न हटाने को अभी भी कमजोर आत्म-छवि और आत्म-अनुशासन मानते हैं। ज्यादा से ज्यादा लोगों में लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए शरीर के उन भागों से बाल का सफाया कर, उनको साफ-सुथरा और स्वच्छ रखना अच्छा है।
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    अपने बालों का ध्यान रखें: आपके बालों की लंबाई कितनी भी हो, आपको इसका नियमित रखरखाव अपने पसंद के सैलून में कट्टिंग, ट्रिम्मिंग इत्यदि करवा के करना चाहिए। घर में चाहे आप इसे जैसे भी रखें, पर घर के बाहर निकलने पर आपके बाल साफ-सुथरे और संवारे हुए हों, इसको सुनिश्चित करें।
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    अपनी चीज़ों का रखरखाव बहुत अच्छे से करें: खास कर, अपने घर और अपनी गाड़ी (यदि यह आपके पास है तो), यह दो सबसे महत्वपूर्ण बाते है, इसके रखरखाव पर सर्वाधिक ध्यान दें। आपको पता नहीं होता कब कोई मेहमान अचानक से घर रप आ जाये, या कोई मेहमान आपकी बाइक या गाड़ी की स्थिति पर गौर कर रहा है, जब आप उसे अंदर या बाहर करते हैं। अपने इस्तेमाल और आसपास की चीजों को साफ-सुथरा रखने से वैसे भी मन प्रसन्न रहता है।
    • कार की धुलाई महीने में एक बार होनी ही चाहिए या गाड़ी की सीट और फ्लोर हमेशा साफ रखें और इसकी सर्विसिंग निर्धारित समय पर करा कर इंजन आयल को बदलना और टायर रोटेशन जैसे काम को सुनिश्चित करना चाहिए। आपके साइकिल की धुलाई महीने में एक बार तो होनी ही चाहिए (साइकिल की धुलाई महीने में एक बार से ज्यादा भी की जा सकती है अगर ये कीचड-धुल में जल्दी सनते हों), और साल में दो बार बाइक की ट्यूनिंग भी करानी चाहिए।
    • अपने घर को भरसक प्रयास करके उतना साफ और स्वच्छ रखें जितना रख सकते हैं। जब खाना-पीना हो जाये, तो रसोईघर और बर्तनों की सफाई रोज होनी चाहिए, ऐसा न करने पर जूठे और इस्तेमाल किये हुए बर्तन इकठ्ठा हो जाते हैं। कपड़ों की धुलाई अक्सर, जब भी वक़्त मिले, कर लिया करें और धुले हुए साफ कपड़ों को अच्छे से फोल्ड करके ही रखा करें। यदि आपके घर में आंगन है, तो घास-फूस को निकालकर आंगन साफ करें। अपने घर के अंदर आने-जाने के रास्तों को साफ-सुथरा रखा करें।
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    अपनी शारीरिक भाषा को नियंत्रित करें: यह बार-बार कहा गया है और यह सच भी है: शारीरिक भाषा लोगों के बीच संवाद प्रेषण का बहुत ही सशक्त माध्यम है। मौखिक भाषा झूट बोल सकती है, शारीरिक भाषा नहीं और यह हर क्षण, हर पल आपके मानसिक अवस्था को बतलाता रहता है। यदि आपको शारीरिक भाषा को पढ़ने की क्षमता है, तो इसकी मदद से आप किसी व्यक्ति और उसकी बातों को उसके द्वारा कहे जा रहे शब्दों के मुकाबले ज्यादा अच्छे से समझ सकते हैं। इसलिये आपको अपनी शारीरिक भाषा पर भी गौर करने की जरुरत है और अगर जरुरी लगे तो उसमें सुधार लाने की जरुरत है।
    • शारीरिक भाषा जटील होती है, और बहुत संदर्भ संवेदनशील भी: शरीर की चाल-ढाल, या अवस्था अलग-अलग अर्थ दर्शाते हैं और यह इस बात पर निर्भर होता है कि इसे कौन प्रकट कर रहा है। इसीलिए, दूसरों की शारीरिक भाषा को पढ़ते रहने की चेष्टा से बेहतर यह है की आप अपनी शारीरिक भाषा सकारात्मक और दूसरों के समझ में आने लायक बनायें। जहाँ तक हो सके इसको अपने नियंत्रण में रखने की कोशिश करें।
    • आपकी चाल बुलंद और बिना किसी झिझक के होनी चाहिए। इसका यह अर्थ नहीं कि आप बहुत तेज-तेज क़दमों से, हड़बड़ी में चलें; बल्की इसका मतलब यह है कि आपकी चाल में आत्मविश्वास दिखना चाहिए। जब भी किसी से हाथ मिलाएं, गर्मजोशी से, जम कर मिलाएं- आपको आश्चर्य होगा जब आप पाएंगे कि कितने सारे लोगों ने इसपर ध्यान दिया। बिना हड़बड़ाहट के, बिना कन्धों को झुकाये हुए आराम से, इत्मिनान से चलिए। आपकी हाथों के हिलने और आपके कदमों की ताल में स्वाभाविक समन्वय होना चाहिए।
    • अपने हाव-भाव और शारीरिक मुद्रा का ध्यान रखिये। इंसान के हाव-भाव और शारीरिक मुद्राएं कितने महत्वपूर्ण हैं, इस बात को दुनिया में सभी लोग जानते और समझते भी हैं। आपके कंधे आपके सीने से थोडा पीछे होने चाहिए। इससे आपकी कमर आगे नहीं झुकेगी। आपकी गर्दन आपके मेरुदंड, यानि स्पाइन दोनो ही एक कतार में होनी चाहिए, जिससे की आपकी ठुड्ढी आगे की ओर निकली न दिखे। उचित शारीरिक मुद्रा न सिर्फ आपको विश्वास और स्वाभिमान से भरा हुआ बनाता है, बल्कि इससे आपको सांस लेने में भी आसानी होती है और इससे बुढ़ापे में होने वाले कमर दर्द का खतरा भी कम हो जाता है।
    • अपने चेहरे का उचित इस्तेमाल कर इसका फायदा उठायें। अगर आँखे आत्मा की खिड़कियां हैं, तो चेहरा एक विशाल दरवाजा है जिसको सिर्फ खोलने की जरुरत होती है। चेहरे पर सच्ची मुस्कुराहट हो, आपस में एक-दूसरे की आँखें मिल रही हों (खासकर जब किसी से बात कर रहे हैं तो), और चेहरे की भाव-भंगिमा ऐसी हो जिससे निष्ठा, नेकनीयती और संवेदना झलकती हो। लोग हँसते-मुस्कुराते, मस्त रहने वाले लोगों के साथ रहना पसंद करते हैं, उनके साथ नहीं जो हमेशा किसी सोच में, उदासी में डूबे रहते हैं।
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    व्यस्त और सक्रिय रहा करें: एक अस्वस्थ शरीर भी अपने आपको बेहतर और स्वस्थ जैसा महसूस करता है जब उसका मालिक उसको सक्रिय रखकर स्वास्थय लाभ की कोशिश निरंतरता के साथ करता है। जहाँ तक संभव हो, नियमित व्यायाम करें और शुद्ध-स्वस्थ खाना खाएं। अगर जीवनशैली को इस तरह से योजनाबद्ध करने में आपको परेशानी भी होती है, तो प्रयास जारी रखिये। हमेशा याद रखिये- थोडा सा प्रयास, प्रयास नहीं करने से कहीं बेहतर है। सुबह जब आप जगते हैं या जब आप काम से घर वापस आते हैं, यदि उस समय आप कुछ मिनटों का व्यायाम कर लें तो इससे आपकी शारीरिक मुद्रा और भाषा अच्छी रहेगी जिससे आप अपने आप को अधिक ऊर्जावान महसूस करेंगे।
विधि 2
विधि 2 का 2:

लोगों के दिलो-दिमाग को जीतना

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  1. How.com.vn हिन्द: Step 1 वाकपटु बनें और...
    वाकपटु बनें और अपनी भाषा को अलंकृत रखने की कोशिश करें: इस दुनिया में बहुत सारे महान वक्ता आये और चले गए, परंतु अरस्तु के रूप में पश्चिमि दुनिया के लोगों के ऊपर जो अमिट छाप प्राचीन यूनानी यानि ग्रीक दार्शनिक ने छोड़ी, वैसा बहुत कम लोग कर पाये। बातों को कहने की उनकी शैली, जो 2000 साल पुरानी है, अभी भी इतनी प्रासंगिक है कि लोग उससे अपनी बातों को प्रभावशाली ढंग से रखने की प्रेरणा लेते हैं। अरस्तु अपनी प्रभावशाली बातों को तीन महत्वपूर्ण भागों में बांटा करते थे। इन भागों को अच्छे समन्वय के साथ जोड़ कर आप अपनी बात या दलील को इतने प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत कर कर सकते हैं, जिसको नकारना मुश्किल होगा।
    • अपनी बातों को कहने या रखने की शैली को तार्किकता की सुदृढ़ता प्रदान करें। तार्किक का अर्थ है, आप जो कहना चाहते हैं वह स्पष्ट हो, व्यवस्थित हो और आतंरिक रूप से सुसंगत हो। तर्कसंगत बातों को तोड़ना-मरोड़ना संभव नहीं और इनके अर्थ का अनर्थ भी नहीं बनाया जा सकता। यदि कोई नकारात्मक व्यक्ति आपकी बातों के साथ कुछ ऐसा करने का प्रयास भी करे तो यह उसकी बेवकूफी जैसी लगेगी।
    • अपनी बातों को विश्वसनीयता प्रदान करने के लिए इन्हें अपनी नीति और प्रकृति के अनुसार रखें। ऐसा करने के लिए आपको अपनी बातों को एक नीतिपरक आधार देना होगा, जो आपके बात कहने के अंदाज, आपके व्यक्तित्व और चरित्र के अनुसार हो (यदि आपकी कुछ ख्याति है, तो अपनी बातों को बोलने में इसका भी ख्याल करें)। जब व्यक्ति अपनी नीति और प्रकृति के अनुसार बातें करता है तो उन बातों से व्यक्ति खुद भी सहमत होता है और इससे दूसरों को भी भरोसा होता है कि वह जो बोल रहा है, वह विश्वसनीय है।
    • श्रोताओं के सामने अपनी बातों को उनके मनोभाव के अनुसार संवेदनशील तरीके से रखें। यह आपके कथन का वह अवयव है, भाग है, जो आपके कथन को श्रोताओं के व्यक्तिगत जीवन, अनुभव, भावनाएं और कल्पनाओं से जोड़ने में मदद करता है। श्रोताओं के अंदर वांछित भावनाएं जागृत करने से, संवेदी संवाद करने से सुनने वाले उन बातों से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हैँ। उनको लगता है कि बोलने वाला जो बातें अपने अनुभव के आधार पर बोल रहा है, वह उनके ऊपर भी लागू होती हैं।
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    तन्मय भाव से सुनने का अभ्यास करें: एक अच्छा श्रोता बहुत तेजी से बातों को सीखता है, परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि आप वक्ता के सामने बैठे हैं और उसके होठों के हिलने को देख रहे हैं। एक अच्छा श्रोता, वक्ता को कुछ तकनीकों की मदद से यह महसूस करा देता है कि वह उसको बहुत ही तन्मय भाव से सुन रहा है। समुचित अभ्यास करने पर, ये सारे तकनीक आपकी संवादशैली के स्वाभाविक अंग बन जायेंगे।
    • जब बोलने वाले की बातों में विराम आए, चाहे वह वाक्य के बीच में ही क्यों न हो, श्रोता को “हाँ”, “हूँ”, जैसी प्रतिक्रियाएं देकर उत्साहित करते रहिये। मगर, ध्यान रखिये कि यह जरुरत से ज्यादा न करें, अन्यथा यह आपमें धैर्य की कमी को दिखलायेगा। कुछ वाक्यों के बाद कुछ ऐसी प्रतिक्रिया काफी है।
    • जब आपके जेहन में कोई सवाल आये, जिसको पूछने से वक्ता उसका जवाब विस्तार में दे सकता है, तो उसे अवश्य पूछें। जितनी जल्दी हो सके पूछें, परंतु वक्त को बीच में टोका-टोकी कर व्यवधान न डालें। इससे पता चलता है कि बोलने वाले की बातों में आपकी इतनी रूचि है कि आप और ज्यादा जानना चाहते हैं।
    • तटस्थ और ईमानदार प्रतिक्रियाएं दें। यदि आपको कोई बात समझ में नहीं आई है, या फिर आप उससे सहमत नहीं है, तो इसे वक्ता को किसी न किसी तरह से जाहिर कर दें जिससे कि वक्ता की तरफ से प्रतिक्रिया आये। अगर बोलने वाला आपकी ओर इस भाव से देख रहा हो मानों उन्हें खुद ही उन बातों पर हैरत है, तो "अच्छा, ऐसा है" या "अरे, यह तो अविश्वसनीय है"- ऐसा कुछ बोलकर तठस्थ रहते हुए भी वक्ता से जुड़ाव स्थापित करें।
    • जब बातें या कहानी ख़त्म हो जाये तो पूछिये कि उनको यह कैसा लगा या इसके विषय में उनका क्या ख्याल है। लंबी बातों के बाद लोगों को उनका संक्षेपण अच्छा लगता है।
    • जब बातो का संक्षिप्तीकरण हो जाये, तो इसके सारांश को फिर से समझिये और वक्ता से इसपर विचार-विमर्श कीजिये। इससे वक्ता को यह पता चलेगा कि आपने उनकी बात को गौर से सुना और समझा, और उसको अच्छा लगेगा। आप अपने विचार प्रस्तुत करके बातचीत को आगे भी ले जा सकते हैं। उदहारण के लिए, जब कोई आपको अपनी पालतू बिल्ली को आकस्मिक रूप से, अचानक से वेटेनरी डॉक्टर के पास ले जाने का वाक्या सुनाये, तो उसकी बात खत्म हो जाने के बाद बोलिये- “अच्छा, तो सचमुच आपकी बिल्ली बीमार थी ? मगर चलिए, आप समय पर उसको वेट (पशुचिकित्सक) के पास ले गए। यह बहुत अच्छा किया, इत्यादि।
    • व्यक्तिगत अनुभवों का प्रयोग करें, परंतु अत्यधिक नहीं। हो सकता है आप स्थिति की समझना और उसके साथ अपनी संवेदना प्रकट करना चाहते हों, परंतु सुनने वाले को यही लगेगा कि आप दूसरों की कम सुनते हैं, सिर्फ अपनी बातें ही करते हैं। इसलिए, अपनी व्यक्तिगत कहानियों और अनुभवों का उचित प्रयोग करें।
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    अच्छे से, प्रभावशाली तरीके से बोलें: बहुत लोगों को लगता है उनकी आवाज पत्थर में गढ़ी हुई है, जिसमे उतार-चढ़ाव संभव नहीं। मगर, यह सच नहीं है। हालाँकि, पतली आवाज़ को एकदम से भारी-भरकम बना लेना संभव नहीं, मगर आप अपनी आवाज के स्वर और सुर पर समुचित नियंत्रण रख कर अपनी वाणी को अद्भुत स्पष्टता प्रदान कर सकते हैं।
    • आवाज को नियत्रित करने के लिए गाना सिखें। अपनी आवाज को सुधारने के लिए ऊँची आवाज में गाना एक बेहतरीन उपाय है। कोई जरुरी नहीं कि आपको कोई सुनने वाला हो। कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कैसा गाते हैं। अपनी गाड़ी में गाइये या फिर घर पर जब आप रोजमर्रा के काम निबटा रहे हों, तब गाइये। कुछ समय के बाद आप पाएंगे कि आपके गले से निकलने वाली आपकी आवाज पर आपको पहले से कहीं ज्यादा नियंत्रण हो गया है। ऐसा होता है अभ्यास का कमाल!
    • मधुर, आस्वस्त और धीमी आवाज में बोलें। इसका अर्थ यह नहीं की आप अपनी आवाज को गहरी कर लें। इसका अर्थ है कि जब आप बोलें तो अपने गले और मुँह में पीछे की ओर, एक बड़े से खाली स्थान की कल्पना करें और उस स्थान को भरने के लिए बोलें। ध्यान दें कि आपकी आवाज नाक से या बहुत दबे गले से तो नहीं आ रही है। स्पष्ट, साफ स्वर में बात करना आपको एक जानकार व्यक्ति जैसा बनाता है और लोग ऐसी ही आवाजों को सुनना पसंद करते हैं।
    • अपनी आवाज को समुचित तीव्रता और फैलाव दें। चीखने की आवश्यकता नहीं, परंतु अपनी वाणी को बहुत कमजोर भी मत रखें। अपनी आवाज को दबाइये मत। ऐसा करने से लोगों को आपकी बातों को समझने में दिक्कत तो होती ही है, इससे आपके अंदर आत्मविश्वास की कमी भी झलकती है।
  4. How.com.vn हिन्द: Step 4 सर्व-स्वीकार्य भाषा का प्रयोग करें:
    लोग आपके शब्दों को समझ रहे हैं, इसका अर्थ यह नहीं कि वो आपकी बातों के भावार्थ को भी अच्छे से समझ रहे हैं। जिनकी भी अपने किसी संबंधी या प्रेमी या प्रेमिका से किसी गलतफहमी की वजह से बहस हुई हो, वो इस बात को बखूबी समझते हैं कि किसी भी बात को अच्छे से या खराब से, दोनों ही तरीके से कहा जा सकता है। भाषा-मनोविज्ञान के कुछ तरीके है, जिनकी मदद से आप अपने मन की बात स्पष्टता के साथ इस तरह से कह सकते हैं जो सुनने वालों को बुरा तो नहीं लगेगा, बल्कि उनको आपका कायल भी बना देगा।
    • भाषा में “मैं” का उपयोग जिम्मेदारियों का बोझ अपने ऊपर डालने जैसा है। किसी भी बहस या बातचीत के दौरान किसी के ऊपर यह आरोप न लगाएं कि उसने आपको ऐसा “बनाया” है या ऐसा कुछ करने को मजबूर किया, इसकी जगह यह बोलें: "जब आप (यह कह रहे थे/ कर रहे थे/ कुछ भी), मुझे ऐसा लगा ...." यह यहाँ लिखने में तो अजीब सा लग रहा है, परंतु वास्तविक वार्तालाप में यह बड़ा कारगर सिद्ध होता है।
      • उदहारण के लिए, “जब तुमने यह कहा, कि तुम्हारी बात ने मुझे गुस्से में पागल बना दिया” यह कहने की जगह, “तुम्हारी बात से मुझे महसूस हुआ कि मैं गुस्से में पागल हो जाऊंगा।“ इस तरह के वाक्य विन्यास का प्रयोग आप हर उस स्थिति में करें जहाँ असहमति बन रही है: “मुझे लगा की आप यह---,” “मुझे लगा (कोई भावना) जब आप...,” और इत्यादि।
    • वार्तालाप या उद्बोधन में “हम” का उपयोग करने से सुनने वाले कही जा रही बातों में खुद को शामिल और प्रासंगिक समझते हैं। जब अवसरों, घटनाओं, या समुह में काम, इस विषय पर चर्चा करते हैं, तो वार्तालापों में 'हम' और 'हमारा' का इस्तेमाल करने से सहकर्मियों और समाज या वरिष्ठों का भरोसा प्राप्त होता है। उदहारण के लिए, “क्या आप इस सप्ताहांत में मेरे साथ बाहर जाना पसंद करेंगे?” की जगह “इस सप्ताहांत में हम साथ होंगे!” का प्रयोग करें। इससे आपके सामने वाले को बराबरी का अहसास होता है और उसे सम्मान की सुखद अनुभूति होती है।
      • दूसरों को शक्तिशाली बनाना स्वयं को शक्तिशाली बनाने का बहुत ही कारगर तरीका है, क्योंकि ऐसा करने वालों से लोग उपकृत हो जाते हैं और जब वक़्त आता है, आपको जब ऐसी कोई आवश्यकता होती है तो बीते समय की सकारात्मकता और आपके सहयोग को याद करके वह उपकृत इंसान आपके लिए कुछ भी करने को हमेशा तैयार रहता है।
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    अपने आसपास के लोगों से ताल मिलाकर चलें: मंच या सड़क पर सम्मोहन कला का प्रदर्शन करने वाले इस तकनीक का उपयोग करके इतने नाटकीय प्रभाव के साथ लोगों को “आकर्षित” कर लेते हैं, मोह लेते हैं, कि वो अपने विचारों को भी बदल लेते हैं, अपने कायदे-कानून से भी थोडा-बहुत समझौता करने को तैयार हो जाते हैं। इस तकनीक में सैद्धांतिक रूप से तो ऐसी कोई बात नहीं है, पर इसमें माहिर होने के लिए बहुत अभ्यास की जरुरत होती है।
    • वार्तालापों की शुरुआत “में” अपने बारे में संक्षिप्त में परिचय दें और लोगों से कुछ साधारण सवाल पूछ कर उनको भी वार्तालाप में सक्रिय करें। अपने सुनने की क्षमता का बखूबी इस्तेमाल करें, लहजे और मौखिक प्रतिक्रियाओं (जैसे, “बहुत अच्छा”, “अरे नहीं”), पर ध्यान दें और सामान्य वार्ता के शब्द-विन्यास पर गौर करें।
    • जब आप प्रतिउत्तर दे रहे हों और लोगों के बीच वो माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हों जो आप चाहते हैं, तो और बोलिये परंतु अपने सामने वाले की मौखिक प्रतिक्रियाएं और और तौर-तरीके से ताल-मेल बनाये रखें। आप उनके लहजे में बात करें, पर ध्यान रखें कि यह उनका मजाक उड़ाने जैसा न लगे। जिनसे आप बात कर रहे, उनसे उनके लहजे में बात करना उनको सुगम लगता है और उनको इससे उनको कहीं न कहीं यह महसूस हो जाता है कि आप भी उनके जैसे ही हैं और वो आप पर भरोसा कर कर सकते हैं।
    • अपने सामने वाले की शारीरिक भाषा के साथ ताल-मेल बैठाएं। क्या वो अपना वजन एक पाँव से दूसरे पाँव पर स्थानांतरित कर रहे हैं? जब उनका कंप्यूटर खुल रहा हो, इस बीच क्या वो अपनी ऊँगली से खट-खट कर रहे है? इन बातों पर ध्यान दें और इनसे ताल-मेल बिठाकर आप अपने सामने वाले से बेहतर भावनात्मक सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं।
  6. How.com.vn हिन्द: Step 6 अपने अच्छे चरित्र का प्रदर्शन करें:
    सहयोग की भावना, करुणा, उत्साह, हौसला और भरोसा जैसे सद्गुणों को प्रदर्शित करने का प्रयास आपको करना चाहिए। ये ऐसे गुण है जिन्हें हर व्यक्ति दूसरे में देखना चाहता है। ये ऐसे गुण हैं जिनकी वजह से लोग आप पर भरोसा कर, आपको सुनना चाहते हैं। ये सारे सद्गुण व्यक्तिगत ईमानदारी और निष्ठा पर निर्भर है और इनके होने का स्वांग इनकी अनुपस्थिति में नहीं रचा जा सकता। परंतु, यदि आप आप इन पर ध्यान दें और ईमानदारी से अभ्यास करें तो आप इनका प्रदर्शन पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा और खुलकर कर सकते हैं।
    • खुद को हर रोज परखते रहें, भिन्न पैमानों पर मापते रहें। सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, पर स्वयं को स्वयं से सिद्ध करना बहुत काम आता है। उन सद्गुणों के विषय में सोचिये जिन्हें आप अपने अंदर लाना चाहते हैं, और उन गुणों के नाम को कभी-कभी जोर-जोर से बोलकर खुद को सुनाइए। अपने आप को बोलिये कि आप एक ऐसे इंसान हैं जिसमें ये गुण हैं: “मैं एक करुण व्यक्ति हूँ,” “मैं एक उत्साही व्यक्ति हूँ” और इत्यादि।
    • अपने अच्छे गुणों के प्रदर्शन करने के अवसरों की तलाश में रहिये। बहुत बार ऐसा होता कि हम कुछ परिस्थितियों में व्यक्तिगत असहजता की वजह से ज्यादा दमदार विकल्पों को छोड़ कर कमजोर विकल्प को चुन लेते हैं, क्योंकि इस पर कम लोगों का ध्यान जायेगा। अपनी आँखें खुली रखें और इस बात को हमेशा जेहन में रखें, खासकर उस समय जब आप किसी बात की उपेक्षा कर रहे हैं या किसी के साथ अशिष्ट हो रहे हैं। जब आपको लगे कि आप एक दुखी, निराश और थके हुए व्यक्ति होते जा रहे हैं, तो अपने आप को उस तरह का इंसान बनाने के लिए मेहनत करें जैसे इंसान को लोग पसंद करते हैं, जैसे इंसान के साथ लोग रहना पसंद करते हैं। हो सकता है इससे दिए गए परिस्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ता हो, फिर भी यह आपके मन-मस्तिष्क के प्रशिक्षण के लिए अत्यंत ही लाभकारी है। एक दिन यह आपके अंदर अच्छे से उतर जायेगा।

विकीहाउ के बारे में

विकीहाउ एक "विकी" है जिसका मतलब होता है कि यहाँ एक आर्टिकल कई सहायक लेखकों द्वारा लिखा गया है। इस आर्टिकल को पूरा करने में और इसकी गुणवत्ता को सुधारने में समय समय पर, 15 लोगों ने और कुछ गुमनाम लोगों ने कार्य किया। यह आर्टिकल २२,८९५ बार देखा गया है।
श्रेणियाँ: शिक्षा और संचार
सभी लेखकों को यह पृष्ठ बनाने के लिए धन्यवाद दें जो २२,८९५ बार पढ़ा गया है।

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