यह आर्टिकल लिखा गया सहयोगी लेखक द्वारा The Verified Initiative of the United Nations. Verified संयुक्त राष्ट्र की एक पहल है, जो जीवन बचाने वाली जानकारी, तथ्य-आधारित सलाह और सर्वोत्तम मानवता से कहानियों को वितरित करने के लिए शोर में कटौती करने वाली सामग्री प्रदान करती है। UN डिपार्टमेंट फॉर ग्लोबल कम्युनिकेशंस के नेतृत्व में, यह पहल लोगों को लेख, वीडियो और संबंधित मीडिया के माध्यम से अपने समुदायों के साथ संयुक्त राष्ट्र-सत्यापित, विज्ञान-आधारित सामग्री साझा करके COVID-19 पर गलत सूचना के प्रसार का मुकाबला करने में मदद करने के लिए भी आमंत्रित करती है। यह पहल पर्पस के सहयोग से है, जो दुनिया के अग्रणी सामाजिक लामबंदी संगठनों में से एक है, और IKEA फाउंडेशन और Luminate द्वारा समर्थित है।
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हम सभी ने उसे देखा है – आपकी टाइमलाइन या न्यूज़फ़ीड में ऐसा कोई आर्टिकल या मीम जो बिल्कुल क्रेज़ी या अविश्वसनीय लगता हो। बात यह है, कि आजकल बहुत अधिक ग़लत जानकारी फैली हुई है। तो अगर कोई दावा या “तथ्य” इतना अच्छा लगता है, कि सच हो ही नहीं सकता, या आप उससे बहुत अधिक अपसेट हो जाते हैं, तब ऐसा संभव है कि वह झूठ हो या बहकाने वाला हो। मगर एक अच्छी बात यह है: आपके पास ऐसे टूल्स भी हैं जिनसे आप इस ग़लत जानकारी में छँटाई कर सकते हैं तथा यह पहचान सकते हैं कि क्या वास्तविक है और क्या झूठा है। ग़लत जानकारी से न सिर्फ़ चिढ़ उत्पन्न होती है, बल्कि वह ख़तरनाक भी होती है। मगर उसे पहचान कर, आप उसके फैलने पर रोक लगा सकते हैं।
चरण
- ज़रा ठहरिए और नई जानकारी के संबंध में स्केप्टिकल रहिए: जब भी आपके सामने ऐसा कोई आर्टिकल या पोस्ट आए जिसे आपने पहले कभी न देखा हो, तब एक सेकंड रुक कर उसके संबंध में सोचिए। उसको तथ्य समझ कर न तो आगे स्क्रोल कर जाइए या न ही बिना किसी स्केप्टिसिज़्म को एकसरसाइज़ किए उस जानकारी को शेयर करिए।[१]
- संदेहपूर्ण होना ठीक है! किसी भी जानकारी को फैलाने से पहले सुनिश्चित होने के लिए उसे इन्वेस्टिगेट कर लेना बेहतर होता है।
- ग़लत जानकारी बहुत हानिकारक हो सकती है, विशेषकर अगर वह कोविड-19 जैसी किसी गंभीर चीज़ के संदर्भ में हो।
- जानकारी के स्त्रोत और तारीख़ को वेरीफ़ाई कर लीजिये: स्त्रोत पर उस जानकारी को जानने के लिए देखिये कि क्या वह वास्तव में वहाँ पर पब्लिश हुई थी। यह सुनिश्चित करने के लिए कि जानकारी अभी भी करेंट है और एक्यूरेट है, आर्टिकल की तारीख को डबल-चेक करिए। आम तौर पर तारीख, आर्टिकल के लेखक के नाम के बग़ल में दी हुई होती है।[२]
- जैसे कि, अगर आप कोई ऐसा कोट या पोस्ट देखते हैं जिसमें यह कहा गया हो कि किसी न्यूज़ ऑर्गनाइज़ेशन ने हाल में हुये आतंकवादी हमले के संबंध में एक आर्टिकल पब्लिश किया था, तब उसे उस न्यूज़ ऑर्गनाइज़ेशन की आधिकारिक वेबसाइट पर यह देखने के लिए देखिये कि क्या उन्होंने वास्तव में वैसा किया था।
- तारीख़ वास्तव में बड़ी बात हो सकती है। जैसे कि, कोई आर्टिकल जिसमें 6 महीने पहले के कोरोनावाइरस केसेज़ की बात की गई हो, वह अभी तो एक्यूरेट नहीं हो सकता है।
- यह देखने के लिए चेक करिए कि क्या आप बता सकते हैं कि ओरिजिनल लेखक कौन है: आर्टिकल को देख कर या उनका नाम ढूंढ कर यह यह पता लगाइए कि यह जानकारी किसने लिखी है। यह जानने के लिए चेक करिए कि क्या लेखक कोई विशेषज्ञ है, अथवा जर्नलिस्ट है, जो विषय को अक्सर कवर करता है, जिससे आप यह जान सकें कि वह जिस विषय में बातें कर रहा है, उसके संबंध में उसको पूरी जानकारी है अथवा नहीं।[३]
- अगर किसी आर्टिकल या जानकारी में लेखक का नाम नहीं लिस्ट किया गया है, तब यह इस बात का संकेत है कि वह झूठी या बहकाने वाली जानकारी हो सकती है।
- उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य और दुरुस्ती के संबंध कोई ऐसा आर्टिकल जिसे किसी रजिस्टर्ड डॉक्टर द्वारा लिखा गया हो, उस आर्टिकल की तुलना में अधिक विश्वसनीय होगा जिसमें किसी लेखक का नाम नहीं दिया गया होगा।
- दूसरे स्त्रोतों में जानकारी के लिए ऑनलाइन खोजिए: यह जानने के लिए दावे या जानकारी को ऑनलाइन देखिये कि क्या दूसरे न्यूज़ आउटलेट्स या ऑर्गनाइज़ेशन्स भी उसी प्रकार की बातें कह रहे हैं। अगर केवल एक ही जगह किसी चीज़ को रिपोर्ट किया जा रहा हो, तब यह इस बात का संकेत है कि वह जानकारी झूठी या बहकाने वाली हो सकती है।[४]
- जैसे कि, अगर आप रेनफॉरेस्ट में जंगल की आग के संबंध में कोई आर्टिकल देखते हैं, तब उसको वेरीफ़ाई करने के लिए ऑनलाइन सर्च करिए कि क्या दूसरे आउटलेट्स भी उसे कवर कर रहे हैं।
- ऐसी जानकारी के संबंध में सावधान रहिए जो स्ट्रॉंग इमोशनल रिस्पोंस ट्रिगर करती हो: ग़लत जानकारी अक्सर आपको क्रोधित, दुखी, भयभीत, या बस अपसेट करने के लिए डिज़ाइन की जाती है। अगर आप कोई ऐसा दावा, आर्टिकल, हेडलाइन, या कोई भी अन्य जानकारी स्पॉट करते हैं जिसके कारण आप बहुत ही स्ट्रॉंग रिएक्शन महसूस करते हैं, तब उससे सावधान हो जाइए। यह एक संकेत हो सकता है कि वह झूठ है और आपसे रिएक्शन पाने के लिए ही डिज़ाइन की गई है।[५]
- जैसे कि, अगर आपके सामने कोई हेडलाइन आती है जिसमें लिखा है, “नया कानून पेट कुत्तों को ले लेगा,” तब अधिक संभावना तो यही है कि या तो यह झूठ है या भ्रामक है।
- टेक्स्ट को यह देखने के लिए पढ़िये कि क्या उसकी भाषा सेन्सेशनल है या उसमें लोडेड टर्म्स का इस्तेमाल किया गया है: अच्छी, क्वालिटी जानकारी को प्रोफेशनल तरीके से प्रस्तुत किया जाएगा और उसमें स्पष्ट और डायरेक्ट भाषा का इस्तेमाल होगा। जब भी आपके सामने कोई जानकारी आए, तब उसे ध्यान से पढ़िये, और उसकी भाषा पर ध्यान दीजिये कि क्या वह ऐसी है जिससे कि आपको विषय के संबंध में खास तरीके से महसूस करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।[६]
- उदाहरण के लिए, किसी क्वालिटी न्यूज़ आर्टिकल में ऐसा कुछ कहा जाएगा, “अधिकारियों को अभी दुर्घटना के कारणों का ठीक तरह से पता नहीं है और अभी भी उसका इंवेस्टिगेशन किया जा रहा है,” जबकि शेडी या बहकाने वाले स्त्रोत में ऐसा कहा जाएगा, “ऐसे राजनीतिज्ञों, जिन्हें कुछ ख़बर नहीं है, को अभी तक दुर्घटना के कारण मालूम नहीं हैं, और शायद वे कभी पता भी नहीं कर पाएंगे।”
- साथ ही अपमानजनक या आक्रामक भाषा पर भी नज़र रखिए।
- सभी कोट्स को यह देने के लिए डबल चेक करिए कि वे एक्यूरेट हैं: आपके सामने ऐसे अनेक मीम्स आते हैं जिनमें कोई कोट फ़ीचर करता है, और उसे किसी खास व्यक्ति को एट्रिब्यूट किया गया होता है। उस कोट को यह देखने के लिए इंटरनेट सर्च के लिए डालिए कि उनका वास्तविक लेखक कौन है। अगर वह मीम से मैच नहीं करता हो, तब संभावना यही है कि वह ग़लत जानकारी होगी।[७]
- उदाहरण के लिए, अगर आप कोई मीम देखते हैं, जिसमें कहा गया हो, “2021 तक सभी कारों को हाइब्रिड होना चाहिए” और उसे डिपार्टमेन्ट ऑफ ट्रांसपोर्टेशन को एट्रिब्यूट किया गया हो, तब सुरक्षित रहिए, और यह देखने के लिए कि क्या वह सच है, उसको इंटरनेट सर्च में रन करिए।
- अगर किसी मीम में यह कहा गया हो कि उसे किसी स्त्रोत द्वारा बैक नहीं किया गया है, तब वह झूठा तथा बहकाने वाला हो सकता है।
- दावे को किसी तथ्य चेक करने वाली साइट पर जाँचिए: जब भी आप कोई दावा या सूचना, किसी मीम, इन्फ़ोग्राफ़िक, या इमेज में देखें, तब किसी तथ्य चेक करने वाली साइट पर टर्म्स को खोजने की कोशिश करके, देखिये क्या इसको वहाँ भी कवर किया गया है। यह जानने के लिए कि दावा सच्चा है या भ्रामक है, साइट पर दिये हुये विवरण को पढ़िये।[८]
- जैसे कि, अगर आप कोई मीम देखते हैं, जिसमें कहा गया हो कि सरकार नागरिकों को मंगल ग्रह पर भेज रही है, तब देखिये क्या तथ्य चेक करने वाली साइट में इस दावे को सपोर्ट किया गया है।
- तथ्य चेक करने वाली वेबसाइट्स की लिस्ट आपको यहाँ पर मिल सकती है: https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_fact-checking_websites
- ज़रूरी नहीं है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया पर शेयर किया गया प्रत्येक मीम या दावा तथ्य चेक करने वाली साइट पर कवर किया गया हो, मगर तब भी चेक करने के लिए यहाँ देखना ठीक ही होता है।
- वास्तविक लोकेशन संबंधी हिंट्स के लिए किसी इमेज में ज़ूम करिए: फ़ोटोज़ तथा इमेजेज़ से मिलने वाले क्ल्यूज़ का इस्तेमाल यह तय करने में मदद पाने के लिए करिए कि क्या दी गई जानकारी वास्तव में एक्यूरेट है। उसमें ज़ूम इन करिए तथा सड़क पर दिये गए निशानों में इस्तेमाल की गई भाषा, कारों की लाइसेन्स प्लेट्स, बैकग्राउंड में फहराने वाले झंडों, या किन्हीं भी दूसरे क्ल्यूज़ जैसी इस प्रकार की डिटेल्स पर ध्यान दीजिये जिनसे आपको पता चल सके कि वह फोटो या इमेज कहाँ से आई है। अगर उसमें जिस जानकारी का दावा किया गया है, वह लोकेशन के साथ लाइन अप नहीं होती है, तब वह झूठा दावा हो सकता है।[९]
- जैसे कि, अगर मीम या इमेज के संबंध में लॉस एंजिल्स की किसी सड़क का ज़िक्र किया गया हो, मगर इमेज में दिखाये गए स्ट्रीट साइन्स इटालियन भाषा में हों, या किसी गाड़ी की लाइसेन्स प्लेट यूएस की न हो, तब संभावना यही है कि यह ग़लत जानकारी है।
- यह पता लगाने के लिए कि यह पहली बार वेब पर कब दिखी थी, रिवर्स इमेज सर्च करके देखिये: गूगल तथा बिंग जैसे सर्च इंजन आपको किसी इमेज का यूआरएल यह ढूँढने के लिए पेस्ट करने देते हैं कि उसे कब और कहाँ पहली बार पोस्ट किया गया था। अगर वह वास्तव में कोई पुरानी इमेज है, जिसे नई की तरह सर्कुलेट किया जा रहा है, तब तो यह बेशक ग़लत जानकारी है। आप शायद यह भी बता सकेंगे कि मूल रूप से वह इमेज आई कहाँ से है, जिससे आपको पता चल सकता है कि क्या वह जानकारी से मैच करती है।[१०]
- तो अगर आप कोई ऐसी मीम या इमेज देखते हैं जिसमें यह दावा किया गया हो कि यह किसी एलिएन स्पेसशिप का सबूत है, तब आप रिवर्स इमेज सर्च रन कर सकते हैं। अगर पता चलता है कि इमेज तो पाँच साल पुरानी है, या उसे मूल रूप में किसी सैटायर के लिए पोस्ट किया गया था, तब तो यह एक्यूरेट नहीं हो सकती है।
- कोई इमेज पहले कब ऑनलाइन देखी जा चुकी है, और यह जानने के लिए कि क्या उसका इस्तेमाल किसी झूठी बात को आगे बढ़ाने के लिए किया जा रहा है, RevEye जैसे टूल का इस्तेमाल करिए।
- रैंडम अक्षरों या नंबर्स के लिए अकाउंट के यूज़रनेम को चेक करिए: हालांकि यह कोई यकीनी टेस्ट नहीं है, परंतु अगर किसी यूज़र के हैंडल या स्क्रीन-नेम में अक्षरों और नंबर्स की रैंडम स्ट्रिंग हो, तब यह इस बात का संकेत हो सकता है कि उसे किसी कंप्यूटर प्रोग्राम से जनरेट किया गया है। जिसने उस जानकारी को पोस्ट किया है उसके प्रोफ़ाइल नाम को यह जानने के लिए देखिये कि क्या वह संदेहास्पद लगता है।[११]
- यह ख़ास तौर पर तब और भी स्केची हो जाता है जब किसी मशहूर व्यक्ति या राजनीतिज्ञ के हैंडल में अक्षरों या नंबर्स की रैंडम स्ट्रिंग होती है। जैसे कि, अगर “TomHanks458594” कुछ पोस्ट करता है, तब या तो यह कोई नकली अकाउंट है या कोई बॉट है।
- याद रखिए, यह कोई निश्चित सनेक्ट नहीं है, मगर यह इस बात का संकेत हो सकता है कि अकाउंट लेजिटीमेट नहीं है।
- अकाउंट के बायो को यह देखने के लिए पढ़िये कि क्या वह यूज़र की एक्टिविटी से मैच करता है: अधिकांश सोशल मीडिया अकाउंट्स में छोटा बायो सेक्शन होता है जहां यूज़र अपने संबंध में जानकारी या संक्षिप्त विवरण शेयर करता है। बायो पर एक नज़र डालिए और देखिये कि क्या वह उस व्यक्ति से और उसके द्वारा शेयर किए गए कंटेन्ट से मैच करता है। अगर वह कुछ अलग लगता है, तब यह कोई नकली अकाउंट हो सकता है।[१२]
- उदाहरण के लिए, अगर उस अकाउंट द्वारा अपराध और हिंसा संबंधी अनेक आर्टिकल शेयर किए जाते हैं, मगर बायो में यह दावा किया जाता है वह शांति और प्यार पर विश्वास करता है, तब वह फ़र्ज़ी हो सकता है।
- अपने कॉमन सेंस का भी इस्तेमाल करिए। क्या वह अकाउंट फ़र्ज़ी लगता है? बॉट अकाउंट्स में कोशिश की जाती है कि वे वास्तविक लगें, मगर उनमें ऐसा कुछ हो सकता है, जो आपको अजीब लगता हो। अपनी अंतरात्मा पर विश्वास करिए।
- अगर आप कर सकते हों, तब पता लगाइए कि अकाउंट कब बनाया गया था: कुछ सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स प्रोफ़ाइल पेज पर उस तारीख़ को शामिल करते हैं, जब वह अकाउंट बनाया गया होता है। पता लगाइए कि क्या उसे अभी हाल ही में बनाया गया था। अगर ऐसा था, तब वह एक नकली अकाउंट हो सकता है जिसे ग़लत जानकारी फैलाने के लिए जनरेट किया गया होगा।[१३]
- जैसे कि, अगर कोई अकाउंट दो महीने पहले बनाया गया था और उसमें और कुछ नहीं, केवल चौंकाने वाले दावे पोस्ट किए जाते हैं, तब वह नकली अकाउंट हो सकता है।
- प्रोफ़ाइल चित्र की, यह देखने के लिए रिवर्स सर्च करिए कि क्या वह नकली है: गूगल या बिंग जैसे किसी सर्च इंजन का इस्तेमाल, प्रोफ़ाइल चित्र को अपलोड करके, इमेज सर्च के लिए करिए। अगर वह कोई स्टॉक इमेज है या प्रोफ़ाइल में जिस व्यक्ति के होने का दावा किया गया उससे लाइन अप नहीं करती है, तब वह नकली या बॉट हो सकती है।[१४]
- स्टॉक इमेज प्रोफ़ाइल चित्र, इस बात का एक प्रमुख क्ल्यू हो सकता है कि प्रोफ़ाइल कोई वास्तविक व्यक्ति नहीं है।
- किसी सेलिब्रिटी की प्रोफ़ाइल पिक्चर, कार्टून, या कोई भी अन्य नॉन-ह्यूमन इमेज का अर्थ होता है कि प्रोफ़ाइल गुमनाम और कम विश्वसनीय है।
- यूज़र की एक्टिविटी पर यह देखने के लिए नज़र डालिए कि क्या वह संदिग्ध है: प्रोफ़ाइल की टाइमलाइन को देखिये। अगर वह दिन में किसी भी समय पर पोस्ट करते हैं, विश्व के अलग-अलग हिस्सों से पोस्ट करते हैं, और उसमें दूसरे अकाउंट से रीट्वीट किए गए पोलराइज़ करने वाला राजनीतिक कंटेन्ट होता है, तब यह बॉट या नकली अकाउंट हो सकता है।[१५]
- उदाहरण के लिए, अगर कोई प्रोफ़ाइल लगातार, दिन के 24 घंटे पोस्ट करती है, तब वह बॉट हो सकता है।
सलाह
- जब बात वेब पर संदेहास्पद जानकारी की हो, तब अपनी इन्स्टिंक्ट्स पर विश्वास करिए। जानकारी को स्वीकार करने या किसी दूसरे के साथ शेयर करने से पहले उसे इंवेस्टीगेट कर लीजिये।
चेतावनी
- ग़लत जानकारी को शेयर करना वास्तव में हानिकारक हो सकता है तथा पब्लिक के विश्वास को कम करता है। ग़लत जानकारी को स्पॉट करना कठिन हो सकता है, इसलिए आप उसको इधर उधर फैलाएँ, इसके पहले ही, बेशक कुछ पल निकाल कर दावे या तथ्य को कन्फ़र्म कर लीजिये।
रेफरेन्स
- ↑ https://www.npr.org/2020/04/17/837202898/comic-fake-news-can-be-deadly-heres-how-to-spot-it
- ↑ https://vimeo.com/433220898
- ↑ https://vimeo.com/437912645
- ↑ https://abcnews.go.com/US/ways-spot-disinformation-social-media-feeds/story?id=67784438
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- ↑ https://www.bbc.com/news/av/stories-51974040
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