कैसे वेरिएबल खर्चे (variable cost) को कैलकुलेट करें

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किसी भी व्यापार के ऑपरेशन (business operation) से संबन्धित खर्चों (costs) को मुख्यतः दो कैटेगरी में बांटा जा सकता है: वेरिएबल (variable) और फ़िक्स्ड (fixed)। वेरिएबल खर्चे वह खर्चे होते हैं जो प्रॉडक्शन की मात्रा (production value) के अनुसार घटते-बढ़ते हैं, जबकि फ़िक्स्ड खर्चे स्थिर (constant) रहते हैं। यह जानना कि खर्चों को कैसे क्लासिफाइ (classify) करें, पहला स्टेप है उनको ठीक से मैनेज करने और अपने व्यापार की एफीश्यंसी (efficiency) बढ़ाने के लिए। वेरिएबल खर्चों को कैलकुलेट करना जानने से आपको अपने प्रति यूनिट प्रॉडक्शन खर्च में कमी करने में मदद मिलेगी, जिससे आपका व्यापार अधिक लाभकारी बनेगा।

विधि 1
विधि 1 का 3:

वेरिएबल खर्चों को कैलकुलेट करना

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  1. How.com.vn हिन्द: Step 1 अपने खर्चों को...
    अपने खर्चों को वेरिएबल अथवा फ़िक्स्ड में क्लासिफाइ (classify) करें: फ़िक्स्ड खर्चे वह खर्चे हैं, जो प्रॉडक्शन की मात्रा में बदलाव के बावजूद, स्थिर रहेंगे। किराया और एड्मिनिस्ट्रेटिव खर्चे फ़िक्स्ड खर्चों के उदाहरण हैं। चाहे आप 1 यूनिट बनाएँ या 10,000, यह खर्चे हर महीने लगभग बराबर ही रहेंगे। वेरिएबल खर्चे प्रॉडक्शन की मात्रा के अनुसार बदलते हैं। उदाहरण के लिए, कच्चा माल (raw materials), पैकजिंग और शिपिंग (packaging and shipping), और कर्मचारियों के वेतन (workers' wages), सभी वेरिएबल खर्चे हैं। आप जितनी अधिक यूनिट बनाएँगे, यह खर्चे उतने अधिक होंगे।[१]
    • एकबार आप वेरिएबल और फ़िक्स्ड खर्चों के बीच का अंतर समझ जाते हैं, तब अपने व्यापार के सभी खर्चों को इनमे बाटें। कई खर्चे, जैसे कि ऊपर दिये उदाहरण में उल्लेखित हैं, आसानी से क्लासिफाइ करे जा सकते हैं। बाकी अधिक अस्पष्ट (ambiguous) होंगे।
    • कुछ खर्चों को क्लासिफाइ करने में दिक्कत आएगी क्योंकि वह विशुद्ध वेरिएबल या फ़िक्स्ड खर्चों के रूप में कार्य नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, एक कर्मचारी को एक निश्चित वेतन दिया जा सकता है और साथ में कमिशन भी, जो बिक्री की मात्रा के अनुसार बदलता है। ऐसे खर्चों को भी, अलग अलग वेरिएबल और फ़िक्स्ड हिस्सों में, बांटना बेहतर होता है। इस उदाहरण में, केवल कर्मचारी की कमिशन को वेरिएबल खर्चा माना जाएगा।[२]
  2. How.com.vn हिन्द: Step 2 एक तय समय के सभी वेरिएबल खर्चों को जोड़ें:
    तय समय सीमा के दौरान हुए अपने सभी वेरिएबल खर्चों को क्लासिफाइ करने के बाद, जोड़ें। उदाहरण के लिए, एक साधारण मैन्यूफैक्चरिंग ऑपरेशन (manufacturing operation) को विचार करते हुए, जिसमे केवल 3 वेरिएबल खर्चे हैं: कच्चा माल (raw materials), पैकजिंग और शिपिंग, और कर्मचारियों का वेतन। इनका जोड़ आपका पूरा वेरिएबल खर्च है।[३]
    • माने की सबसे निकटतम वर्ष में खर्चे इस प्रकार हैं: रुपये 35,000 का कच्चा माल, रुपये 20,000 का पैकेजिंग और शिपिंग, और रुपये 100,000 कर्मचारी वेतन में।
    • इसलिए वर्ष का कुल वेरिएबल खर्च , या रुपये है। यह खर्चे उस वर्ष की प्रॉडक्शन की मात्रा से सीधे संबन्धित हैं।
  3. How.com.vn हिन्द: Step 3 कुल वेरिएबल खर्चे...
    कुल वेरिएबल खर्चे को प्रॉडक्शन की मात्रा से भाग दें: एक तय समय के दौरान कुल वेरिएबल खर्चे को उसी समय के दौरान हुई प्रॉडक्शन की मात्रा से भाग देने से आपको प्रति यूनिट वेरिएबल खर्च पता चलेगा। विशेष रूप से, प्रति यूनिट वेरिएबल खर्च को ऐसे कैलकुलेट कर सकते हैं , जहां v प्रति यूनिट वेरिएबल खर्च है, V कुल वेरिएबल खर्च है, और Q बनाए गए सामान की कुल मात्रा है। उदाहरण के लिए, यदि उपरोक्त बिज़नस ने, उस साल, अपने प्रॉडक्ट की 500,000 यूनिट बनाईं, तो उसका प्रति यूनिट वेरिएबल खर्च या रुपया है।
    • यूनिट वेरिएबल खर्च केवल प्रति बनाई गई यूनिट का वेरिएबल खर्च है। यह वह अतिरिक्त खर्च है जो प्रत्येक अतिरिक्त यूनिट को बनाने में लगता है। उदाहरण के लिए, यदि उपरोक्त बिज़नस ने 100 यूनिट और बनाईं, तो उसे रुपए 31 का अतिरिक्त प्रॉडक्शन खर्च करने की संभावना है।[४]
विधि 2
विधि 2 का 3:

हाइ-लो (High-Low) तरीके का प्रयोग

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  1. How.com.vn हिन्द: Step 1 मिक्स्ड (mixed) खर्चों को समझें:
    कई बार खर्चों को आसानी से वेरिएबल या फ़िक्स्ड में नहीं बांटा जा सकता है। यह खर्चे प्रॉडक्शन के साथ बढ़ सकते हैं, लेकिन वह प्रॉडक्शन या बिक्री के अभाव में जरूरी भी हैं। इन खर्चों को मिक्स्ड खर्चे कहा जाता है। मिक्स्ड खर्चों को, फ़िक्स्ड और वेरिएबल भागों में, प्रत्येक की सही गणना करने के लिए, बांटा जा सकता है।
    • मिक्स्ड खर्चों का एक उदाहरण एक ऐसे कर्मचारी का वेतन है जिसे तनख़्वाह के साथ कमीशन भी मिलता है। तनख़्वाह तब भी दी जाती है जब कोई बिक्री नहीं होती है, लेकिन कमीशन बिक्री की मात्रा पर निर्भर करती है। इस उदाहरण में, कमीशन एक वेरिएबल खर्च है, और तनख़्वाह एक फ़िक्स्ड खर्च है।[५]
    • मिक्स्ड खर्चे उन वेतनधारियों पर भी लागू होते हैं जिन्हे, प्रत्येक वेतन अवधि (pay period) में, एक निश्चित घंटे काम दिये जाने की गारंटी दी जाती है। नियमित घंटे (regular hours) फ़िक्स्ड खर्चे होंगे, लेकिन कोई भी ओवरटाइम वेरिएबल खर्च होगा।
    • इसके अतिरिक्त, कर्मचारी कल्याण (employee benefits) के खर्चों को भी मिक्स्ड खर्च माना जाएगा।
    • एक थोड़ा जटिल (complicated) उदाहरण है यूटिलिटीस (utilities) पर होने वाले खर्च। बिजली, पानी, और गैस का भुगतान करना ही पड़ता है चाहे कोई प्रॉडक्शन न हो। लेकिन, प्रॉडक्शन के दौरान, उन्हें ज्यादा मात्रा में प्रयोग करना पड़ता है। इन खर्चों को फ़िक्स्ड और वेरिएबल खर्चों के बीच में बांटने के लिए, ज्यादा जटिल तरीके की जरूरत होगी।
  2. How.com.vn हिन्द: Step 2 गतिविधि (activity) और खर्च को मापें:
    मिक्स्ड खर्चों को फ़िक्स्ड और वेरिएबल भागों में बांटने के लिए, आप "हाइ-लो (high-low)" तरीके का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह तरीका, सबसे अधिक और सबसे कम प्रॉडक्शन वाले महीनों के, मिक्स्ड खर्चों से शुरू होता है, और उनके अंतर को, वेरिएबल खर्चों को कैलकुलेट करने के लिए, प्रयोग करता है। प्रारम्भ करने के लिए, यह पता करें कि किन महीनों ने, सबसे अधिक और सबसे कम गतिविधि (प्रॉडक्शन), देखी है। गतिविधि को एक नापने योग्य तरीके (जैसे मशीन-घंटे) में रिकॉर्ड करें, और प्रत्येक महीने के मिक्स्ड खर्चे को जिसे आप प्रत्येक महीने के लिए पता करना (assess) चाहते हैं।[६]
    • उदाहरण के लिए, मान लें कि आपकी कंपनी, प्रॉडक्शन की प्रक्रिया में, मेटल के टुकड़ों को वॉटर-कटर (water-cutter) से काटती है। इसमे पानी की जरूरत एक वेरिएबल खर्च के रूप में है जो प्रॉडक्शन की मात्रा पर निर्भर करते हुए, बढ़ता है। इसके अलावा, आपकी प्रॉडक्शन उपक्रम (production facility) में आप पानी का अन्य इस्तेमाल और खर्च भी करते हैं (पीने के पानी के लिए, रेस्टरूम के लिए आदि)। इसलिए, आपका पानी का खर्चा, मिक्स्ड खर्चा होगा।
    • मानिए कि इस उदाहरण में, सबसे अधिक वाले महीने में आपका पानी का बिल था रुपये 9,000 और 60,000 मशीन-घंटों (machine-hours) का प्रॉडक्शन हुआ था। सबसे कम वाले महीने में, पानी का बिल था रुपये 8,000 और 50,000 मशीन-घंटों का प्रॉडक्शन हुआ था।
  3. How.com.vn हिन्द: Step 3 वेरिएबल खर्चे के रेट (variable cost rate) को कैलकुलेट करें:
    वेरिएबल खर्च रेट को निकाल कर, दोनों आंकड़ों (figures) (खर्च और प्रॉडक्शन) के बीच अंतर को पता करें। वेरिएबल खर्च रेट को इस फॉर्मूले से निकाला जा सकता है , जहां C और c क्रमशः ज्यादा और कम महीनों के खर्चे हैं, और P तथा p प्रॉडक्शन के स्तर को दर्शाते हैं।
    • इस उदाहरण में, यह होगा । यह फिर सरलीकृत होकर होता है , जो देता है रुपया । इसका मतलब है कि प्रत्येक अतिरिक्त मशीन-घंटे के प्रॉडक्शन पर खर्च रुपया 0.10 है।[७]
  4. How.com.vn हिन्द: Step 4 वेरिएबल खर्च को पता करें:
    अब आप वेरिएबल खर्च रेट का प्रयोग करके, यह पता कर सकते हैं कि आपके फ़िक्स्ड खर्चे का कितना भाग वेरिएबल है। इस आंकड़ें को पता करने के लिए, वेरिएबल खर्च रेट को प्रॉडक्शन से गुणा करें। इस उदाहरण में, यह होगा रुपये , या रुपये , कम वाले महीने के लिए, और रुपये , या रुपये , सबसे अधिक वाले महीने के लिए। ये हर महीने के वेरिएबल खर्चे को दर्शाते हैं। आप इसे महीने के कुल खर्च से घटा कर फ़िक्स्ड खर्च पता कर सकते हैं, जो उपरोक्त दोनों मामलों में रुपये 3,000 है।[८]
विधि 3
विधि 3 का 3:

वेरिएबल खर्च जानकारी का प्रयोग

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  1. How.com.vn हिन्द: Step 1 वेरिएबल खर्च के ट्रेंड (trend) को नापें:
    अधिकतर मामलों में, बढ़ता प्रॉडक्शन, प्रत्येक अतिरिक्त यूनिट को अधिक लाभकारी बनाता है। इसका कारण है की फ़िक्स्ड खर्चे अब अधिक प्रॉडक्शन मात्रा में बांटे गए हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई बिज़नस 500,000 यूनिट प्रति वर्ष का प्रॉडक्शन करता है, और रुपये 50,000 प्रति वर्ष किराए पर खर्च करता है, तो किराया खर्च प्रति यूनिट रुपये 0.10 आंबाटित (allocate) होगा। यदि प्रॉडक्शन दोगुना हो जाए तो, किराया अब केवल रुपये 0.05 प्रति यूनिट की दर से अब आंबाटित होगा, जिससे प्रत्येक बिक्री में अधिक लाभ का अवसर मिलेगा। इसलिए, जैसे रेविन्यू या प्राप्तियाँ (revenues) बढ़ती हैं, बिक्री किए गए माल का खर्च भी बढ़ना चाहिए, लेकिन धीमे रेट से (क्योंकि आम तौर पर प्रति यूनिट वेरिएबल खर्च स्थिर रहता है, और फ़िक्स्ड खर्च प्रति यूनिट घटता है।)।
    • यह पता करने के लिए कि वेरिएबल खर्च स्थिर रहते हैं अथवा नहीं, कुल वेरिएबल खर्च को रेविन्यू (revenue) से भाग दें। इससे आपको यह पता चलेगा कि खर्च का कितना भाग वेरिएबल खर्च है। आप इसकी तुलना पूर्व के वेरिएबल खर्च के डाटा से कर सकते हैं, यह पता करने के लिए, कि प्रति यूनिट वेरिएबल खर्च बढ़ या घट रहा है।[९]
    • उदाहरण के लिए, अगर कुल वेरिएबल खर्च एक साल रुपये 70,000 था और अगले वर्ष रुपये 80,000 था जबकि रेविन्यू क्रमशः रुपये 1,000,000 और रुपये 1,150,000 था, तो आप देख सकते हैं कि वेरिएबल खर्च, इन दो वर्षों में, काफी समान रहा है रुपये , या प्रतिशत, और रुपये , या रेविन्यू का प्रतिशत, क्रमशः)।
  2. How.com.vn हिन्द: Step 2 वेरिएबल खर्चे के...
    वेरिएबल खर्चे के अंश (proportion) को रिस्क पता करने के लिए प्रयोग करें: एक यूनिट के लिए वेरिएबल खर्चे और फ़िक्स्ड खर्चों की तुलना करने से, आप प्रत्येक तरीके के खर्चे का अनुपात (proportion) पता कर सकते हैं। इसे वेरिएबल खर्चे को कुल प्रति यूनिट खर्चे से भाग देकर इस फॉर्मूले से निकाला जा सकता है जहां v और f क्रमशः प्रति यूनिट वेरिएबल और फ़िक्स्ड खर्चे हैं। उदाहरण के लिए, अगर प्रति यूनिट फ़िक्स्ड खर्च रुपये 0.10 है और वेरिएबल खर्च प्रति यूनिट रुपये 0.40 (प्रति यूनिट कुल खर्च रुपये 0.50 के लिए), तब प्रति यूनिट खर्च का 80 प्रतिशत खर्च वेरिएबल खर्च है (रुपये )। एक बाहरी निवेशक (outside investor) के रूप में, आप इस जानकारी को भविष्य में प्रॉफ़िट रिस्क को पता करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
    • अगर कोई कंपनी, प्रॉडक्शन में मूलरूप से वेरिएबल खर्चों को पाती है, तो उसका प्रति यूनिट खर्च ज्यादा स्थिर होगा। इससे, स्थिर बिक्री को मानते हुए, कंपनी स्थिर प्रॉफ़िट की ओर अग्रसर होगी।
      • यह बड़े फुटकर विक्रेता, जैसे वालमार्ट (Walmart) और रिलायंस (Reliance) के लिए ज्यादा सच है। उनके फ़िक्स्ड खर्चे, वेरिएबल खर्चों की तुलना में, काफी कम होते हैं, जिसके कारण प्रत्येक बिक्री में उनके खर्चों का अधिक अनुपात शामिल होता है।[१०]
    • फिर भी, ज्यादा फ़िक्स्ड खर्चों के अनुपात वाली कंपनी, ज्यादा आसानी से एकोनोमीस ऑफ स्केल (economies of scale) का फायदा उठा पाएँगी (ज्यादा प्रॉडक्शन की वजह से कम प्रति-यूनिट खर्च)। इसका कारण है की आय (रेविन्यू), खर्चों की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ेगी।
      • उदाहरण के लिए, एक कंप्यूटर सॉफ्टवेयर कंपनी के पास, प्रॉडक्ट डेवलपमेंट और सपोर्ट स्टाफ (product development and support staff) से संबन्धित फ़िक्स्ड ख़र्चे होंगे, लेकिन वह अपनी सॉफ्टवेयर की बिक्री तेजी से बढ़ा सकती है, बिना वेरिएबल खर्चों में वृद्धि किए।
    • इसके बावजूद, स्लंपिंग बिक्री (slumping sales) के दौरान, एक कंपनी, जिसने मूलतः वेरिएबल खर्चो पर ज्यादा निर्भरता दिखाई, वह बहुत आसानी से अपना प्रॉडक्शन बढ़ा पाएगी, जबकि एक कंपनी जिसके मूलतः फ़िक्स्ड ख़र्चे हों, को ज्यादा प्रति-यूनिट फ़िक्स्ड खर्चों से झूझने के लिए तरीकों को इस्तेमाल करना पड़ेगा।[११]
    • एक कंपनी जिसके फ़िक्स्ड ख़र्चे अधिक हों और वेरिएबल ख़र्चे कम हों, को प्रॉडक्शन लेवेरेज (production leverage) उपलब्ध होता है, जो लाभ और हानि को, रेविन्यू पर निर्भर करते हुए, मेग्नीफ़ाई कर देती है। मूल रूप से, एक निश्चित बिन्दु (point) के ऊपर बिक्री अधिक लाभकारी होती है, जबकि उस बिन्दु के नीचे बिक्री ज्यादा महंगी होती है।
    • आम तौर पर, कंपनी को रिस्क और लाभप्रदता (profitability) के बीच, फ़िक्स्ड और वेरिएबल खर्चों को एडजस्ट करके, एक संतुलन कायम करना चाहिए।
  3. How.com.vn हिन्द: Step 3 उसी इंडस्ट्री की दूसरी कंपनियों से तुलना करें:
    एक कंपनी के लिए, प्रति यूनिट वेरिएबल खर्च और कुल वेरिएबल खर्च, पता करें। फिर उस कंपनी की इंडस्ट्री के औसत वेरिएबल खर्च के बारे में डाटा पता करें। इससे आपको तुलना का एक स्टैंडर्ड प्राप्त होगा जिससे आप पहली कंपनी को जांच सकते हैं। अधिक प्रति-यूनिट वेरिएबल खर्च यह दर्शा सकते हैं कि कंपनी, बाकी कंपनियों की तुलना में, कम एफिसेंट (efficient) है, जबकि कम प्रति-यूनिट वेरिएबल खर्च, कोम्पेटिटिव लाभ (competitive advantage) दर्शा सकती है।[१२]
    • औसत से अधिक प्रति-यूनिट खर्च यह बताता है कि कंपनी, साधनों (resources) पर (जैसे लेबर, मटिरियल, यूटिलीटीस) पर अपने प्रतिद्वंदी (competitors) की तुलना में, सामान के प्रॉडक्शन में, अधिक खर्च करती है। इससे कम एफिसेंसि (efficiency) या महंगे मटिरियल का पता अगता है। दोनों दशा में, कंपनी उतनी लाभकारी नहीं होगी जितना उसके प्रतिद्वंदी हैं जबतक वह अपने ख़र्चे को न घटाए या दाम को बढ़ा दे।
    • दूसरी तरफ, एक कंपनी जो उतना ही प्रॉडक्शन, कम ख़र्चे पर कर सकती है, अपनी प्रतिद्वंदी कंपनियों की तुलना में, बाकी बाज़ार से कम दाम में बेचकर, एक कोम्पेटिटिव लाभ (competitive advantage) प्राप्त कर सकती है।
    • यह कौस्ट एडवांटेज (cost advantage) सस्ते रिसौर्सेस (resources), सस्ते लेबर, या बेहतर प्रॉडक्शन एफिसेंसि (manufacturing efficiency) के कारण हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए, एक कंपनी जिसे कॉटन, अपने प्रतिद्वंदीयों की अपेक्षा में, सस्ते दाम पर मिल जाता है, वह कमीज़ें कम वेरिएबल ख़र्चे में बना सकती है, जिनके लिए वह कम दाम ले सकती हैं।
    • पब्लिक्ली ट्रेडेड कंपनियाँ (publicly traded companies) अपने वित्तीय स्टेटमेंट (financial statements) सार्वजनिक करती हैं, अपनी वेबसाइट्स के जरिये या Securities and Exchange Board of India (SEBI) के माध्यम से। उनके आमदनी के स्टेटमेंट्स को देखकर, वेरिएबल खर्चों की जानकारी पायी जा सकती है।
  4. How.com.vn हिन्द: Step 4 ब्रेक-ईवन एनालिसिस (break-even analysis) करें:
    वेरिएबल ख़र्चे, यदि पता हों, को फ़िक्स्ड खर्चों के साथ मिला कर , हम नए प्रोजेक्ट की ब्रेक-ईवन एनालिसिस कर सकते हैं। एक मैनेजर, प्रॉडक्शन होने वाली यूनिट की संख्या को बढ़ा सकता है, प्रॉडक्शन के प्रत्येक चरण में, फ़िक्स्ड और वेरिएबल खर्चों का अंदाज़ा लगाकर। इससे वह यह देख पाएंगे कि, प्रॉडक्शन के किस लेवेल में, अधिकतम लाभ हो सकता है।[१३]
    • उदाहरण के लिए, अगर आप की कंपनी कोई नया प्रॉडक्ट बनाना चाहती है जिसमे रुपये 100,000 का प्रारम्भिक निवेश (initial investment) है, तो आप यह जानना चाहेंगे कि, अपने निवेश को वापस पाने के लिए और कुछ लाभ कमाने के लिए, आपको उस प्रॉडक्ट के कितने यूनिट बेचने पड़ेंगे। ऐसा करने के लिए आपको निवेश (इनवेस्टमेंट) और अन्य फ़िक्स्ड खर्चों को वेरिएबल खर्चों के साथ मिलाकर जोड़ना पड़ेगा फिर उसे, विभिन्न प्रॉडक्शन के लेवेल्स पर, रेविन्यू से घटाना पड़ेगा।
    • आप ब्रेक ईवन पॉइंट को निम्न फॉर्मूले से भी कैलकुलेट कर सकते हैं: । इस फॉर्मूला में, F और v क्रमशः आपके फ़िक्स्ड और प्रति-यूनिट वेरिएबल ख़र्चे हैं, P प्रॉडक्ट का बिक्री मूल्य (selling price) है, और Q ब्रेक ईवन मात्रा (quantity) है।[१४]
    • उदाहरण के लिए, अगर प्रॉडक्शन के दौरान अन्य फ़िक्स्ड ख़र्चे कुल रुपये 50,000 होते हैं (मूल रुपये 100,000 के फ़िक्स्ड खर्चों के ऊपर), वेरिएबल खर्च है रुपया 1 प्रति यूनिट, और प्रॉडक्ट की बिक्री रुपये 4 प्रति यूनिट पर होती है, तो आप ब्रेक ईवन पॉइंट को कैलकुलेट करेंगे निम्न को सॉल्व करके , जो 50,000 यूनिट का उत्तर देता है।

टिप्स

  • नोट करें कि ऊपर दिखाया गया सैंपल कैलकुलेशन दूसरी करेंसी में भी काम करेगा।

विकीहाउ के बारे में

How.com.vn हिन्द: Madison Boehm
सहयोगी लेखक द्वारा:
बिजनेस एडवाइजर, Jaxson Maximus
यह आर्टिकल लिखा गया सहयोगी लेखक द्वारा Madison Boehm. मैडिसन बोहेम एक बिजनेस एडवाइज और दक्षिणी फ्लोरिडा में स्थित पुरुषों के सैलून और कस्टम क्लॉथियर Jaxson Maximus की सह-संस्थापक हैं। ये बिजनेस डेवलपमेंट, ऑपरेशन, और फाइनेंस में माहिर हैं। इसके अतिरिक्त, इन्हें सैलून, कपड़े और रिटेल सेक्टर में अनुभव है। मैडिसन ने ह्यूस्टन विश्वविद्यालय से Entrepreneurship और Marketing में BBA किया है। यह आर्टिकल २,११९ बार देखा गया है।
श्रेणियाँ: व्यापार
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