विलियम शेक्सपीयर

विलियम शेक्स्पीयर (William Shakespeare ; 23 अप्रैल 1564 - 23 अप्रैल 1616 ) अंग्रेज़ी के कवि, काव्यात्मकता के विद्वान नाटककार तथा अभिनेता थे।[1] उनके नाटकों का लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हुआ है।[2]

विलियम शेक्स्पीयर
जन्म विलियम शेक्स्पीयर
23 अप्रैल 1564
स्ट्रैट्फ़ोर्ड, इंग्लैंड
मौत अप्रैल 23, 1616(1616-04-23) (उम्र 52)
स्ट्रैट्फ़ोर्ड, इंग्लैंड
समाधि चर्च अव़ द़ होली ट्रिनिटी, स्ट्रैट्फ़ोर्ड
पेशा कवि, नाटककार
प्रसिद्धि का कारण कविता, नाटक
जीवनसाथी एनी हाथवे
बच्चे सुसना हाल, ह्याम्नेट शेक्सपियर, उदिथ क्विनेइ
माता-पिता जोन शेक्सपियर, मेरी अर्डेन
हस्ताक्षर

शेक्स्पीयर में अत्यंत उच्च कोटि की सृजनात्मक प्रतिभा थी और साथ ही उन्हें कला के नियमों का सहज ज्ञान भी था। प्रकृति से उन्हें मानो वरदान मिला था अत: उन्होंने जो कुछ छू दिया वह सोना हो गया। उनकी रचनाएँ न केवल अंग्रेज जाति के लिए गौरव की वस्तु हैं वरन् विश्ववांमय की भी अमर विभूति हैं। शेक्स्पीयर की कल्पना जितनी प्रखर थी उतना ही गंभीर उनके जीवन का अनुभव भी था। अत: जहाँ एक ओर उनके नाटकों तथा उनकी कविताओं से आनंद की उपलब्धि होती है वहीं दूसरी ओर उनकी रचनाओं से हमको गंभीर जीवनदर्शन भी प्राप्त होता है। विश्वसाहित्य के इतिहास में शेक्स्पीयर के समकक्ष रखे जानेवाले विरले ही कवि मिलते हैं।[3]

परिवार संपादित करें

शेक्स्पीयर, जॉन शेक्स्पीयर, चमड़े के व्यापारी और मैरी आरडेन की तीसरी संतान थी, जो स्थानीय उत्तराधिकारिणी थी। शेक्सपियर की दो बड़ी बहनें, जोन और जुडिथ और तीन छोटे भाई, गिल्बर्ट, रिचर्ड और एडमंड थे। शेक्सपियर के जन्म से पहले, उनके पिता एक सफल व्यापारी बन गए और एक महापौर से मिलते-जुलते अधिकारी और बेलीफ के रूप में आधिकारिक पदों पर रहे। हालांकि, रिकॉर्ड से संकेत मिलता है कि जॉन की किस्मत 1570 के दशक के अंत में घट गई।[उद्धरण चाहिए]

परिचय संपादित करें

विलियम शेक्सपियर, जॉन शेक्सपियर तथा मेरी आर्डेन के ज्येष्ठ पुत्र एवं तीसरी संतान थे। इनका जन्म स्ट्रैटफोर्ड आन एवन में हुआ। बाल्यकाल में उनकी शिक्षा स्थानीय फ्री ग्रामर स्कूल में हुई। पिता की बढ़ती हुई आर्थिक कठिनाइयों के कारण उन्हें पाठशाला छोड़कर छोटे मोटे धंधों में लग जाना पड़ा। जीविका के लिए उन्होंने लंदन जाने का निश्चय किया। इस निश्चय का एक दूसरा कारण भी था। कदाचित् चार्ल कोट के जमींदार सर टामस लूसी के उद्यान से हिरण की चोरी की ओर कानूनी कार्यवाही के भय से उन्हें अपना जन्मस्थान छोड़ना पड़ा। उनका विवाह सन् १५८२ में एन हैथावे से हो चुका था। सन् १५८५ के लगभग शेक्सपियर लंदन आए। शुरू में उन्होंने एक रंगशाला में किसी छोटी नौकरी पर काम किया, किंतु कुछ दिनों के बाद वे लार्ड चेंबरलेन की कंपनी के सदस्य बन गए और लंदन की प्रमुख रंगशालाओं में समय समय पर अभिनय में भाग लेने लगे। ग्यारह वर्ष के उपरांत सन् १५९६ में ये स्ट्रैटफोर्ड आन एवन लौटे और अब इन्होंने अपने परिवार की आर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ बना दी। सन् १५९७ में इन्होंने धीरे धीरे नवनिर्माण एवं विस्तार किया। इसी भवन में सन् १६१० के बाद वे अपना अधिकाधिक समय व्यतीत करने लगे और वहीं सन् १६१६ में उनका देहांत हुआ।

कृतियाँ संपादित करें

शेक्सपियर की रचनाओं के तिथिक्रम के संबंध में काफी मतभेद है। सन् १९३० में प्रसिद्ध विद्वान् सर ई.के. चैंबर्स ने तिथिक्रम की जो तालिका प्रस्तुत की वह आज प्राय: सर्वमान्य है। तब भी इधर पिछले वर्षों की खोज से तिथियों के संबंध में कुछ नवीन धारणाएँ बनी हैं। इन नई खोजों के आधार पर मैक मैनवे महोदय ने एक नवीन तालिका तैयार की है जो सर ई.के. चैंबर्स की सूची से कुछ भिन्न है।

लगभग २० वर्षों के साहित्यिक जीवन में शेक्सपियर की सर्जनात्मक प्रतिभा निरंतर विकसित होती गई। सामान्य रूप से इस विकासक्रम में चार विभिन्न अवस्थाएँ दिखाई देती है। प्रारंभिक अवस्था १५९५ में समाप्त हुई। इस काल की प्राय: सभी रचनाएँ प्रयोगात्मक है। शेक्सपियर अभी तक अपना मार्ग निश्चित नहीं कर पाए थे, अतएव विभिन्न प्रचलित रचनाप्रणालियों को क्रम से कार्यान्वित करके अपना रचनाविधान सुस्थिर कर रहे थे, प्राचीन सुखांत नाटकों की प्रहसनात्मक शैली में उन्होंने 'दी कामेडी ऑव एरर्स' और 'दी टेमिंग ऑफ दी सू' की रचना की। तदुपरांत 'लव्स लेबर्स लॉस्ट' में इन्होंने लिली के दरबारी सुखांत नाटकों की परिपाटी अपनाई। इसमें राजदरबार का वातावरण उपस्थित किया गया है जो चतुर पात्रों के रोचक वार्तालाप से परिपूर्ण है। 'दी टू जेंटिलमेन ऑव वेरोना' में ग्रीन के स्वच्छंदतावादी सुखांत नाटकों का अनुकरण किया गया है। दु:खांत नाटक भी अनुकरणात्मक हैं। 'रिचर्ड तृतीय' में मालों का तथा 'टाइटस एंड्रानिकस' में किड का अनुकरण किया गया है किंतु 'रोमियो ऐंड जुलिएट' में मौलिकता का अंश अपेक्षाकृत अधिक है। इसी काल में लिखी हुई दोनों प्रसिद्ध कविताएँ 'दी रेप आव् लुक्रीस' और 'वीनस ऐंड एडोनिस' पर तत्कालीन इटालियन प्रेमकाव्य की छाप है।

विकासक्रम की दूसरी अवस्था सन् १६०० में समाप्त हुई। इसमें शेक्सपियर ने अनेक प्रौढ़ रचनाएँ संसार को भेंट कीं। अब उन्होंने अपना मार्ग निर्धारित तथा आत्मविश्वास अर्जित कर लिया था। 'ए मिड समर नाइट्स ड्रीम' तथा 'दी मर्चेंट आव वेनिस' रोचक एवं लोकप्रिय सुखांत नाटक हैं किंतु इनसे भी अधिक महत्व रखनेवाले शेक्यपियर के सर्वोत्कृष्ट सुखांत नाटक 'मच एडो एबाउट नथिंग', 'ऐज यू लाइक इट' तथा 'ट्वेल्वथ नाइट' इसी काल में लिखे गए। इन नाटकों में कवि की कल्पना तथा उसके मन के आह्लाद का उत्तम प्रकाशन हुआ है। सर्वोत्तम ऐतिहासिक नाटक भी इसी समय लिखे गए। मार्लो से प्रभावित 'रिचर्ड द्वितीय' उसी श्रेणी की पूर्ववर्ती कृति 'रिचर्ड तृतीय' से रचनाविन्यास में कहीं अधिक सफल है। 'हेनरी चतुर्थ' के दोनों भाग और 'हेनरी पंचम' जो सुविख्यात ऐतिहासिक नाटक हैं, इसी काल की रचनाएँ हैं। शेक्सपियर के प्राय: सभी सॉनेट जो अपनी उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के लिए अनुपम हैं, सन् १५९५ ओर १६०७ के बीच लिखे गए।

तीसरी अवस्था, जिसका अंत लगभग १६०७ में हुआ, शेक्सपियर के जीवन में विशेष महत्व रखती है। इन वर्षों में पारिवारिक विपत्ति एवं स्वास्थ्य की खराबी के कारण कवि का मन अवसन्न था। अत: इन दिनों की अधिकांश रचनाएँ दु:खांत हैं। विश्वप्रसिद्ध दु:खांत नाटक हैमलेट, ओथेलो, किंग लियर और मैकबेथ एवं रोमन दु:खांत नाटक जूलियस सीजर, 'एंटोनी ऐंड क्लिओपाट्रा' एवं 'कोरिओलेनस' इसी कालावधि में लिखे गए और अभिनीत हुए। 'ट्रवायलस ऐंड क्रेसिडा', 'आल्स वेल दैट एंड्स वेल' और 'मेजर फार मेजर' में सुख और दु:ख की संश्लिष्ट अभिव्यक्ति हुई है, तब भी दु:खद अंश का ही प्राधान्य है।

विकास की अंतिम अवस्था में शेक्सपियर ने पेरिकिल्स, सिंवेलिन, 'दी विंटर्स टेल', 'दी टेंपेस्ट' प्रभृति नाटकों का सर्जन किया, जो सुखांत होने पर भी दु:खद संभावनाओं से भरे हैं एवं एक सांध्य वातावरण की सृष्टि करते हैं। इन सुखांत दु:खांत नाटकों को रोमांस अथवा शेक्सपियर के अंतिम नाटकों की संज्ञा दी जाती है।

रचनागत विशेषताएँ संपादित करें

शेक्सपियर के सुखांत नाटकों की अपनी निजी विशेषताएँ हैं। यद्यपि 'दी कामेडी आव एरर्स' में प्लाटस का अनुसरण किया गया है तथापि अन्य सुखांत नाटक प्राचीन क्लासिकी नाटकों से सर्वथा भिन्न हैं। इनका उद्देश्य प्रहसन द्वारा कुरूपताओं का मिटाना तथा त्रुटियों का सुधार करना नहीं वरन् रोचक कथा और चरित्रचित्रण द्वारा लोगों का मनोरंजन करना है। इस प्रकार के प्राय: सभी नाटकों का विषय प्रेम की ऐसी तीव्र अनुभूति है जो युवकों और युवतियों के मन में सहज आकर्षण के रूप में स्वत: उत्पन्न होती है। प्रेमी जनों के मार्ग में पहले तो बाधाएँ उत्पन्न होती हैं किंतु नाटक के अंत तक कठिनाइयाँ विनष्ट हो जाती हैं और उनका परिणाम संपन्न होता है। इन रचनाओं में जीवन की कवित्वपूर्ण एवं कल्पनाप्रवण अभिव्यक्ति हुई है और समस्त वातावरण आह्लाद से ओत-प्रोत है। शेक्सपियर का परिचय कतिपय उच्चवर्गीय परिवारों से हो गया था और उनमें जिस प्रकार का जीवन उन्होंने देखा उसी का प्रकाशन इन नाटकों में किया है।

दु:खांत नाटकों में मानव जीवन की गंभीर समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है। इन नाटकों के अभिजात कुलोत्पन्न नायक कुछ समय तक सफलता और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होने के उपरांत यातना और विनाश के शिकार बनते हैं। उनके दु:ख और मृत्यु के क्या कारण हैं, इस विषय पर शेक्सपियर का मत स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त हुआ है। नायक का दुर्भाग्य अंशत: प्रतिकूल नियति एवं परिस्थितियों से उद्भूत है, किंतु इससे कहीं बड़ा कारण उसकी चारित्रिक दुर्बलता में मिलता है। प्राचीन यूनानी दुखांत नाटकों में नायक केवल त्रुटिपूर्ण निर्णय अथवा त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण के कारण विनष्ट होता था परंतु, कदाचित् ईसाई धर्म और नैतिकवाद से प्रभावित होकर, शेक्सपियर ने अपने नाटकों में नायक के पतन की प्रधान जिम्मेदारी उसकी चारित्रिक दुर्बलता पर ही रखी है। हैमलेट, आथेलो, लियर और मैकबेथ - इन सभी के स्वभाव अथवा चरित्र में ऐसी कमी मिलती है जो उनके कष्ट एवं मृत्यु का कारण बनती है। इन दु:खांत नाटकों में दुहरा द्वंद्व परिलक्षित हुआ है, आंतरिक द्वंद्व एव बह्य द्वंद्व। आंतरिक द्वंद्व नायक के मन में, उसके विचारों और भावनाओं में उत्पन्न होता है और अपनी तीव्रता के कारण न केवल निर्णय कठिन बना देता है अपितु कुछ समय के लिए नायक का आसूल विचलित भी कर देता है। इस प्रकार के आंतरिक द्वंद्व के कारण नाटकों में मनोवैज्ञानिक सूक्ष्मता और रोचकता का आविर्भाव हुआ है। बाह्य द्वंद्व बाहरी शक्तियों की स्पर्धा और उनके संघर्ष से उत्पन्न होता है, जैसे दो विरोधी राजनीतिक दलों अथवा सेनाओं का पारस्परिक विरोध। शेक्सपियर के प्रमुख दु:खांत नाटकों में रक्तगत एवं भयावह दृश्यों की अवतारणा के कारण अत्यंत आतंकपूर्ण वातावरण निर्मित हुआ है। इसी भाँति हत्या और प्रतिशोध संबंधी दृश्यों के समावेश से भी अवसाद का पुट गहरा हो गया है। इन सभी विशेषताओं और उपकरणों को शेक्सपियर ने कतिपय पुराने नाटकों तथा सेनेका, किड्, मार्लो आदि नाटककारों से ग्रहण किया था और सामयिक लोकरुचि को ध्यान में रखकर ही उनका उपयोग अपने नाटकों में किया था। दु:खांत नाटकों की जिन विशेषताओं का उल्लेख हमने यहाँ किया है वे न केवल हैमलेट, आथेलो, किंग लियर, और मैकबेथ में मिलती हैं वरन् रोमियो ऐंड जुलिएट तथा इंग्लैंड और रोम के इतिहास पर आधृत दु:खांत नाटकों में भी आंशिक रूप में विद्यमान हैं।

शेक्सपियर ने जिन ऐतिहासिक नाटकों की रचना की उनमें कई रोमन इतिहास विषयक हैं। इन रोमन नाटकों के लेखन में शेक्सपियर ने इतिहास के तथ्यों को थोड़ा बहुत बदल दिया है और कतिपय स्थलों पर ऐसा प्रतीत होने लगता है कि जीवन का जो चित्र उपस्थित किया गया है वह प्राचीन रोम का नहीं अपितु ऐलिज़वेथ कालीन इंग्लैंड का है। इतना होने पर भी ये नाटक सदैव लोकप्रिय रहे हैं, विशेषकर जुलियस सीजर तथा एंटोनी ऐंड क्लिओपाट्रा। ऐंटोनी ऐड क्लिओपाट्रा कवित्वपूर्ण अंशों स भरा पड़ा है तथा क्लिओपाट्रा की चरित्रकल्पना अत्यंत प्रभावोत्पादक है। टाइमन ऑव एथेंस और पेरिकिल्स में यूनानी इतिहास की घटनाओं का निरूपण किया गया है। अंग्रेजी इतिहास पर आधारित नाटकों में कुछ तो ऐसे हैं जो केवल आंशिक रूप में शेक्सपियर द्वारा लिखे गए हैं किंतु हेनरी चतुर्थ के दोनों भाग और हेनरी पंचम पूर्ण रूपेण शेक्सपियर द्वारा प्रणीत हैं। इन तीनों नाटकों में कवि को महान् सफलता मिली है। इनमें शौर्य और सम्मानभावना का अत्यंत आकर्षक प्रतिपादन हुआ है और फाल्स्टाफ का चरित्र अत्यंत रोचक एवं स्पृहणीय हैं। रिचर्ड तृतीय और रिचर्ड द्वितीय में मार्लो का अनुकरण सफलतापूर्वक किया गया है। शेक्सपियर के पूर्व के अधिकांश अंग्रेजी ऐतिहासिक नाटकों में तथ्यों और घटनाओं का निर्जीव चित्रण रहता था तथा कोरी इतिवृत्तात्मकता के कारण वे नीरस होते थे। शेक्सपियर ने इस प्रकार के नाटकों को जीवंत रूप देकर चमत्कारपूर्ण बना दिया है।

अंतिम नाटकों में शेक्सपियर का परिपक्व जीवनदर्शन मिलता है। महाकवि को अपने जीवन में विभिन्न प्रकार के अनुभव हुए थे जिनकी झलक उनी कृतियों में दिखाई पड़ती है। प्रणय विषयक सुखांत नाटकों में कल्पनाविलास है और कवि का मन ऐश्वर्य और यौवन की विलासिता में रमा है। दु:खांत नाटकों में ऐसे दु:खद अनुभवों को अभिव्यक्ति है जो जीवन को विषाक्त बना देते हैं। शेक्सपियर के कृतित्व की परिणति ऐसे नाटकों की रचना में हुई जिनमें उनकी सम्यक बुद्धि का प्रतिफलन हुआ है। कवि अब अपनी विवेकपूर्ण दृष्टि से देखता है कि जीवन में सुख और दु:ख दोनों सन्निविष्ट रहते हैं, अत: दानों ही क्षणिक हैं। जीवन में दु:ख दोनों सन्निविष्ट रहते हैं, अत: दोनों ही क्षणिक हैं। जीवन में दु:ख के बाद सुख आता है, अतएव विचार और व्यवहार में समत्व वांछनीय है। इन अंतिम नाटकों से यह निष्कर्ष निकलता है कि हिंसा और प्रतिशोध की अपेक्षा दया और क्षमा अधिक श्लाघनीय हैं। अपने गंभीर नैतिक संदेश के कारण इन नाटकों का विशेष महत्व है।

शेक्सपियर के नाटक स्वच्छंदतावादी हैं तथा प्राचीन यूनानी और लैटिन नाटकों की परंपरा से पृथक् हैं। अत: उनमें वस्तुविन्यास की शास्त्रीय विशेषताओं को ढूँढ़ना उचित नहीं है। केवल अपने अंतिम नाटक 'दी टेंपेस्ट' में उन्होंने तीनों अन्वितियों का निर्वाह किया है। प्राय: सभी अन्य नाटकों में केवल कार्यान्विति का ध्यान रखा गया है, समय और स्थान की दृष्टि से वे नितांत निबंध हैं। कथावस्तु में सदैव पर्याप्त विस्तार मिलता है और सामान्यत: उसमें कई कथाएँ अंतर्निहित रहती हैं। उदाहरणार्थ हम ए मिड समर नाइट्स ड्रीम, दी मर्चेंट आव वेनिस, ऐज़ यू लाइक इट अथवा किंग लियर को ले सकते हैं। इन सभी में अनेक कथाओं के मिश्रण द्वारा वस्तुनिर्माण संपन्न हुआ है। किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि शेक्सपियर के नाटकों की बनावट त्रुटिपूर्ण है। अंत:कथाओं का नाट्यवस्तु में सुंदर, कलापूर्ण रीति से गुंफन किया गया है तथा संपूर्ण कथानक से संकलित एकता का आभास मिलता है। शास्त्रीय अर्थ में अन्वितियों का अभाव होने पर भी इन स्वच्छंदतावादी नाटकों में भावानात्मक तथा कल्पनात्मक एकीकरण हुआ है।

पात्रकल्पना में शेक्सपियर को और भी अधिक सफलता मिली है। अपने नाटकों में उन्होंने अनेक आकर्षक पात्रों की सृष्टि की है जो अपने जीवंत रूप में हमारे सामने आते हैं। समय के साथ चरित्रनिरूपण की प्रक्रिया अधिकाधिक सूक्ष्म एवं कलात्मक होती गई। उदाहरण के लिए हम सुखांत नाटकों में समाविष्ट रोज़ालिन, पोर्सिया, वियार्ट्रस, रोज़ालिंड, वायला प्रभृति प्रगल्भा नारियों को ले सकते हैं जो अपनी प्रखर बुद्धि और वाक्चातुरी का परिचय निरंतर देती हैं। दूसरी कोटि की वे नारियाँ हैं जिनके अनुपम सौंदर्य और संकटपूर्ण अनुभवों के कारण मन में करुणा का उद्रेक होता है। ऐस नारियों में प्रमुख हैं जुलिएट, ओफिलिया, डेसडिमोना, कार्डिलिया, इमोजेन इत्यादि। दु:खांत नाटकों में चरित्रचित्रण का अत्यधिक महत्व है। उदाहरण के लिए हम हैमलेट को ले सकते हैं। नाटक की समस्त घटनाएँ नायक के चरित्र पर केंद्रित हैं और उसी के व्यक्तित्व के प्रभाव से कथा का विकास होता है। अंशत: यही बात अन्य दु:खांत नाटकों के लिए भी सत्य है। प्राचीन यूनानी नाटकों में अनेक स्मरणीय पात्र मिलते हैं किंतु नैतिक और मनोवैज्ञानिक उपकरणों के सहारे अंकित किए हुए शेक्सपियर के प्रमुख पात्र कहीं अधिक रोचक एवं आकर्षक हैं। आंतरिक द्वंद्व के उपयोग से दु:खांत नाटकों की पात्रकल्पना और भी अधिक चमत्कारपूर्ण हो गई है। शेक्सपियर के नाटकों के कुछ अन्य पात्र भी उल्लेखनीय हैं जैसे विदूषक और खलनायक। विदूषकों में फाल्स्टाफ टचस्टोन, फेस्टे और किंग लियर का स्वामिभक्त विदूषक आदि महत्वपूर्ण हैं। खलनायकों में रिचर्ड तृतीय, इयागो, एडमंड इयाशियों आदि की गणना होती है। जैसा हैज़लिट ने लिखा है, शैक्सपियर की शक्ति का पता इससे लगता है कि न केवल उनके महत्वपूर्ण पात्रों में वैशिष्ट्य है वरन् उनके बहुसंख्यक लघु पात्र भी अपना निजी महत्व रखते हैं।

यद्यपि शेक्सपियर के नाटकों में कहीं कहीं गद्य का प्रयोग हुआ है, तब भी वे मूलत: काव्यात्मक है। उनका अधिकांश भाग छंदोबद्ध है। यही नहीं, प्राय: सभी नाट्य रचनाएँ काव्यात्मक गुणों से भरी पड़ी हैं। कल्पना का प्रकाशन, आलंकारिक अभिव्यक्ति, संगीतात्मक लय तथा कोमल भावनाओं के निरूपण द्वारा शेक्सपियर ने मनोमुग्धकारी प्रभाव उत्पन्न कर दिया है। प्राचीन काल से नाटकों का कविता का एक भेद मात्र मानते आए थे और शेक्सपियर ने प्राचीन धारणा स्वीकार की। गद्य का प्रयोग यदा कदा विशेष प्रयोजन से हुआ है। किंतु सामान्य रूप से हम शेक्सपियर के नाटकों को काव्यनाट्य की संज्ञा दे सकते हैं। काव्यतत्व शुरू में अत्यधिक था किंतु शनै: शनै: उसका रूप संयत हो गया और प्रयोजन के विचार से उसका नियंत्रण होने लगा। इसी भाँति शेक्सपियर की शैली में समाविष्ट करने के लिए निरंतर प्रयास किया; फलत: प्रारंभिक नाटकों में विस्तृत वर्णनों एव सुंदर रूपकों का बाहुल्य है अपनी प्रतिभा की प्रौढ़ावस्था में जब शेक्सपियर अपने प्रसिद्ध दु:खांत नाटकों की रचना कर रहे थे उस समय तक उनकी शैली संतुलित हो गई थी। प्राथमिक अवस्था में अभिव्यक्ति का अधिक महत्व था और विचारों का कम। किंतु इस माध्यमिक काल में विचारों, भावों तथा अभिव्यक्ति के साधनों का सम्यक् समन्वय हुआ है। यह संतुलित व्यवस्था अंतिम वर्षों में शेक्सपियर का ध्यान विचारों और नैतिक प्रतिमानों पर केंद्रित था और उन्होंने शैलीगत चमत्कार की उपेक्षा की। इसीलिए अंतिम नाटकों की शैली कहीं कहीं अनगढ़ हो गई है।

शेक्सपियर ने अपने नाटक मुख्यत: रंगमंच पर अभिनय के लिए लिखे थे, यद्यपि काव्यात्मक गुणों के कारण हम उनसे पठन द्वारा भी आनंद प्राप्त करते हैं। तत्कालीन रंगमंच की बनावट अभिनय की व्यवस्था, दर्शकों की लोकरुचि, इन सभी का प्रभाव शेक्सपियर के नाट्यनिर्माण पर पड़ा। दो एक उदाहरण ही पर्याप्त होंगे। उस समय रंगे हुए परदों का उपयोग नहीं होता था, इसलिए नाटकों में अनेक वर्णनात्मक अंशों का समावेश हुआ है। इन्हीं वर्णनों द्वारा स्थान, काल और परिस्थिति का संकेत होता था। नाटकों में स्वगत एवं स्वभाषित का निरंतर उपयोग इसीलिए संभव हो सका कि रंगमंच का अगला त्रिकोणाकार भाग प्रेक्षकों के बीच तक आगे बढ़ा रहता था। कई पुरुष और नारी पात्रों का सर्जन शेक्सपियर ने केवल इसलिए किया कि उनके उपयुक्त अभिनेता उपलब्ध थे। दर्शकों के मनोरंजनार्थ अनेक दृश्यों की अवतारणा हुई है जिनमे रंगमंच पर उत्तेजक एवं मनोरंजक परिस्थितियों का प्रदर्शन हुआ है। आज के यथार्थवादी रंगमंच की भाँति एलिजवेथ युगीन रंगमंच प्रचुर साधनों तथा निश्चित व्यवस्था द्वारा बँधा हुआ था। अभिनय और प्रदर्शन दोनों ही अपेक्षाकृत उन्मुक्त थे, इसलिए शेक्सपियर के नाटकों में पर्याप्त ऋजुता मिलती है।

प्राय: सभी प्रकार के नाटकों में महाकवि ने गेय मुक्तकों का सन्निवेश किया है जो अपने सौंदर्य और माधुर्य के लिए अनुपम हैं। इनके अतिरिक्त शेक्सपियर की विस्तृत कविताएँ हैं, जिनमें 'विनस ऐंड एडोनिस', 'दी रेप आव लुक्रीस' तथा सानेट्स का उल्लेख आवश्यक है। ये सभी कृतियाँ १६ वीं शताब्दी के अंतिम दशक की हैं जब शेक्सपियर का मन सौंदर्य एवं प्रणय के प्रभाव से आह्लादपर्ण हो गया था। 'विनस ऐंड एडोनिस' में एक प्राचीन प्रेमकथा को अत्यंत काव्यात्मक रीति से वर्णित किया गया है। 'दी रेप ऑव लुक्रीस' में एक परम सुंदरी रोमन महिला के दुर्भाग्य और मृत्यु की कथा है। सानेट्स में कुछ ऐसे हैं जो कवि के एक मित्र से संबंध रखते हैं जिसने विवाह न करने का निश्चय कर लिया था। शेक्सपियर ने उसके रूप और गुणों की चर्चा करते हुए उससे अपना निश्चय बदलने के लिए आग्रह किया है। सानेटों का दूसरा क्रम एक श्यामवर्ण महिला से संबंधित है जिसे प्रति कवि के मन में तीव्र आकर्षण उत्पन्न हुआ था किंतु जिसने उस स्नेह का आदर न करके कवि के उस मित्र को अपना प्रणय दिया, जिसको ध्यान में रखकर सानेटों का प्रथम क्रम लिखा गया था। शेक्सपियर ने इन सानेटों में अपनी आंतरिक भावनाओं का प्रकाशन किया है अथवा वे परंपरागत रचनाएँ मात्र हैं, यह प्रश्न अत्यंत विवादग्रस्त है।[4]

आधार-ग्रन्थ-
  • ब्रैडले, ए.सी. : शेक्सपीरियन ट्रैजेडी (१९५२),
  • निकोल, अलरडाइस : स्टडीज़ इन शेक्सपियर (१९२७),
  • हैरिसन, जी.वी., शेक्सपीयर्स ट्रैजेडीज़ (१९५१),
  • बार्क्ट, ग्रैनविले : प्रीफेसेज़ शेक्सपियर।

लेखन-कार्य एवं प्रकाशित कृतियाँ संपादित करें

नाटकलेखन/प्रथम मंचनप्रकाशनहिन्दी अनुवादअनुवादकप्रकाशक
Henry VI Part I1592 March 31594------------
Henry VI, Part II1592-931594------------
Henry VI, Part III1592-931623------------
Titus Andronicus1594 January 241594------------
द कॉमेडी ऑफ़ एरर्स1594 December 281623भूलभुलैयारांगेय राघवराजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली
Taming of the Shrew1593-941623
  1. परिवर्तन
  2. अलबेला-अलबेली
  1. रांगेय राघव
  2. गौरीशंकर रैणा
  1. राजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली
  2. नेशनल बुक ट्रस्ट, भारत, नयी दिल्ली
Two Gentlemen of Verona1594-951623------------
Love's Labour's Lost1594-951598निष्फल प्रेमरांगेय राघवराजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली
रोमियो और जूलियट

(THE TRAGEDY OF ROMEO AND JULIET)

1594-951597रोमियो जूलियटरांगेय राघवराजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली
A Midsummer Night's Dream1595-961600
  1. फागुन मेला
  2. कामदेव का अपना वसंत ऋतु का सपना
  1. रघुवीर सहाय
  2. हबीब तनवीर
  1. राजकमल, नयी दिल्ली (रचनावली में)
  2. वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली
The Merchant of Venice1596-971600
  1. दुर्लभ बन्धु
  2. वेनिस का सौदागर
  1. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
  2. रांगेय राघव
  1. अनेक
  2. राजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली
Henry IV, Part I1597-981598------------
Henry IV, Part II1597-981600------------
Much Ado About Nothing1598-991600तिल का ताड़रांगेय राघवराजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली
Henry V1598-991600------------
ऐज़ यू लाइक इट1599-001623जैसा तुम चाहोरांगेय राघवराजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली
जूलियस सीज़र

(THE TRAGEDY OF JULIUS CAESAR)

1600-011623
  1. जूलियस सीजर
  2. जूलियस सीज़र (अंग्रेजी टेक्स्ट एवं काव्यानुवाद)
  1. रांगेय राघव
  2. अरविन्द कुमार
  1. राजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली
  2. राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली
Richard II1601 February 71597------------
Richard III1600-011597------------
हैमलेट

(THE TRAGEDY OF HAMLET, PRINCE OF DENMARK)

1600-011603
  1. हैमलेट
  2. हैमलेट
  3. हैमलेट (मूल के अनुरूप पद्य-गद्यानुवाद)
  1. अमृतराय
  2. रांगेय राघव
  3. हरिवंशराय बच्चन
  1. हंस प्रकाशन, इलाहाबाद
  2. राजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली
  3. राजकमल, नयी दिल्ली (रचनावली में)
The Merry Wives of Windsor1600-011602------------
Twelfth Night1602 February 21623
  1. बारहवीं रात
  2. बारहवीं रात
  1. रांगेय राघव
  2. रघुवीर सहाय
  1. राजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली
  2. राजकमल, नयी दिल्ली (रचनावली में)
All's Well That Ends Well1602-031623------------
Troilus and Cressida1604 February 71609------------
Measure for Measure1604 December 261623------------
THE TRAGEDY OF OTHELLO, MOOR OF VENICE1604-051622
  1. ओथेलो
  2. ओथेलो (मूल के अनुरूप पद्य-गद्यानुवाद)
  3. ऑथेलो
  4. ऑथेलो
  1. रांगेय राघव
  2. हरिवंशराय बच्चन
  3. रघुवीर सहाय
  4. दिवाकर प्रसाद विद्यार्थी
  1. राजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली
  2. राजकमल, नयी दिल्ली (रचनावली में)
  3. राजकमल, नयी दिल्ली (रचनावली में)
  4. साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली
किंग लीयर

(THE TRAGEDY OF KING LEAR)

1606 December 261608
  1. किंग लियर (मूल के अनुरूप पद्य-गद्यानुवाद)
  2. किंग लियर
  1. हरिवंशराय बच्चन
  2. अरुण शर्मा
  1. राजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली, एवं राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली (रचनावली में)
  2. प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली
मैकबेथ

(THE TRAGEDY OF MACBETH)

1605-061623
  1. मैकबेथ
  2. मैकबेथ (मूल के अनुरूप पद्य-गद्यानुवाद)
  3. बरनम वन
  1. रांगेय राघव
  2. हरिवंशराय बच्चन
  3. रघुवीर सहाय
  1. राजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली
  2. राजकमल, नयी दिल्ली (रचनावली में)
  3. राजकमल, नयी दिल्ली (रचनावली में)
THE TRAGEDY OF ANTONY AND CLEOPATRA1606-071623------------
Coriolanus1607-081623------------
Timon of Athens1607-081623------------
Pericles1608-091609------------
The Tempest1611 November 11623
  1. तूफान
  2. तूफ़ान (मूल के अनुरूप पद्य-गद्यानुवाद)
  1. रांगेय राघव
  2. डॉ॰ उपेन्द्र
  1. राजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली
  2. राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली
Cymbeline1611-121623------------
The Winter's Tale1611-121623------------
Henry VIII1612-131623------------
The Two Noble Kinsmen1612-131634------------

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "शेक्सपीयर की क़ब्र में छुपे राज़!". मूल से 20 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 दिसंबर 2017.
  2. Craig 2003, 3.
  3. हिंदी विश्वकोश, खंड-11, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण-1969, पृ०-298.
  4. हिंदी विश्वकोश, खंड-11, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण-1969, पृ०-295से298.[इस आलेख के मूल लेखक राम अवध द्विवेदी हैं। यहाँ दिया गया पूरा आलेख यथावत् उद्धृत है। मूल के संदर्भ-ग्रंथों की सूची 'आधार-ग्रन्थ' में दी गयी है।]

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें